अक्षय तृतीया मुहूर्त शनिवार सुबह 07. 50 बजे से अगले दिन 07.48 बजे तक रहेगा
हल्द्वानी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर वर्ष बैशाख मास शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष 22 अप्रैल शनिवार को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। अक्षय तृतीया शनिवार सुबह 07. 50 बजे पर शुरू होगी और रविवार सुबह 07. 48 बजे समाप्त होगी। अक्षय तृतीया पर्व, पूजन एवं दान शनिवार को ही करना शुभ होगा।
ज्योतिषचार्य प्रतीक मिश्रपुरी के मुताबिक अक्षय तृतीया का पर्व इस वर्ष शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन कृतिका नक्षत्र, आयुष्मान और सौभाग्य योग रहेगा। अक्षय तृतीया के दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष में मौजूद रहेंगे। इसकी वजह से इस बार की अक्षय तृतीया का विशेष महत्व होगा। अक्षय का अर्थ है, जो कभी भी ख़त्म नहीं होता। अर्थात जिसका कभी अंत नहीं होता।
सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है। इस दिन को सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन भी कहते हैं। इस दिन शुभ काम के लिए पंचांग देखने की जरूरत नहीं होती, लेकिन गुरु अस्त तारा डूबा होने के कारण इस वर्ष यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य नहीं होगे। बाकी कार्य जैसे सोना, चांदी, नए बर्तन, जमीन खरीदनी, नया मकान बनाने आदि का कार्य कर सकते हैं।
मान्यता है कि इस दिन खरीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता। भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। ये वस्तु करें दान अच्छी नियत से दी गई हर वस्तु के दान का पुण्य मिलता है। इस दिन घी, शक्कर, अनाज, फल, सब्जी, इमली, कपड़े, सोना, चांदी, जौ, गेहूं, सत्तू, दही, चावल, मिट्टी का घड़ा, फल आदि का दान देना चाहिए। इस दिन छोटे से छोटे दान का भी बहुत महत्व है।
मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर इलेक्ट्रानिक्स सामान देने का भी महत्व है। इस दिन कई लोग पंखे, कूलर आदि का दान करते हैं। इसके पीछे यह धारणा है की यह पर्व गर्मी के दिनों में आता है, इसलिए गर्मी से बचने के उपकरण दान में देने से लोगों का भला होगा।
अक्षय तृतीया का महत्व
अक्षय तृतीया का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इसी दिन भगवान विष्णु जी के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ व गंगा का अवतरण हुआ था। अन्नपूर्णा का जन्म की भी मान्यता है। कुबेर को आज के दिन खजाना मिला था। दौपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज के ही दिन बचाया था। सतयुग और त्रेतायुग का प्रारब्ध इसी दिन हुआ था। कृष्ण और सुदामा का मिलन भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण, बद्री नारायण का कपाट आज के दिन ही खोले जाते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं अन्यथा सालभर चरण वस्त्रों से ढके रहते हैं। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।