चंपावत- फलोत्पादन एवं बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन में सीएम धामी का मॉडल जिला धीरे-धीरे हिमांचल की तर्ज पर कदम बढ़ाने लगा है। यदि यही रफ्तार जारी रही तो आने वाले कुछ ही वर्षों में इन उत्पादों से किसानों के चेहरों में आने वाली मुस्कान इस जिले की पहचान बनेगी। हालांकि मौसम में आए बदलाव के कारण अब डेलीसस का स्वाद लोग भूल गए हैं। लेकिन उद्यान विभाग द्वारा यहां लाई गई सेव की नई प्रजातियां डेलीसस का स्थान लेती जा रही हैं। सबसे पहले सुईं गांव के पूर्व फौजी एवं प्रगतिशील किसान तारादत्त खर्कवाल बाहर से चार सौ रुपए प्रति पौध खरीद कर उन्होंने सेव के पौध लगाये थे। तीन साल में फल देने वाली इन प्रजातियों से उद्यान विभाग द्वारा 218 हेक्टेयर क्षेत्र को आच्छादित कर दिया है। अब यहां के लिए कीवी का उत्पादन भले ही नया अनुभव हो, लेकिन औषधीय गुणों से भरपूर इस फल का प्रक्षेत्र लगातार बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिक परीक्षणों में यहां की मिट्टी कीवी के लिए काफी विषेश पाई गई है। पांच साल से फल देने वाले कीवी के पौधे तब उत्पादकों की जेब गर्म कर देंगे, जब एक ही पेड़ नोटों की बौछार करने लगेगा। अब यहां के घाटी वाले क्षेत्रों में आम के उत्पादन को भी काफी बढ़ावा दिया जा रहा है। हरेला पर्व के बाद घाटी क्षेत्रों से आम बाजार में आने लगता है।
उद्यान विभाग द्वारा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेव, कीवी, अखरोट तथा घाटियों में आम, अमरूद, लीची को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है। विभागीय सफलता के पीछे यहां के चारों ब्लॉकों में तैनात एमएस रावत, आशीष रंजन खर्कवाल, प्रदीप पचौली एवं निधि जोशी जैसे उद्यान विशेषज्ञों की सोच है, जो बीएचओ टी एन पांडे के निर्देशन में नई सोच के साथ कार्य कर रहे हैं।
अखरोट एवं अमरूद के उत्पादन में भी पहचान बनने जा रही है
वह दिन दूर नहीं जब चंपावत जिले की जैविक अखरोट एवं अमरूद के उत्पादन में भी पहचान बनने जा रही है। बांस-हिचौड़ा गांव के जगतराम ऐसे किसान हैं, जो एक लाख रुपए के अमरुद बेचने लगे हैं। बेमौसमी सब्जियों का क्षेत्र भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष फ्राचबीन, टमाटर एवं शिमला मिर्च आदि सब्जियों के दामों में जो चमक आई है, उससे किसानों का इस ओर और रुझान बढ़ता जा रहा है। जिले में इस वर्ष एक हजार से अधिक पॉलीहाउस स्थापित किए जाने हैं। यदि पॉलीहाउस में ड्रिप सिंचाई की सुविधा दी जाती है,तो यही पॉलीहाऊस बेरोजगारी दूर करने का एक माध्यम बनेंगे।
बॉक्स मौन पालन एवं फलोत्पादन की जुगलबंदी से उत्पादन को मिलता है बढ़ावा
जिले में जिस तेजी के साथ फलोत्पादन, सब्जी उत्पादन एवं फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, यदि इसमें मौनपालन को जोड़ दिया जाए तो यह सोने में सुहागे जैसा काम करेगा। इससे पॉलीनेशन के कारण जहां उत्पादन में 30 से 35 फ़ीसदी इजाफा आएगा बल्कि उत्पादों की गुणवत्ता में भी काफी निखार आ जाता है। जागरुक किसान एवं वैज्ञानिक इस जुगलबंदी को उत्पादन के लिए काफी महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उनका कहना है कि इससे उत्पादन भी बढ़ेगा और शहद की मांग भी पूरी होगी। हालांकि जिले में मौनपालन के प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन लोग तीन दिन के विभागीय प्रशिक्षण से कितना सीख रहे होंगे ? इससे साफ जाहिर है कि इस कार्यक्रम के जरिए सरकारी धन को ठिकाने तो लगाया जा सकता है, लेकिन लोगों को रोजगार नहीं।