खुशाल खनी (लघु कथा)
(अल्मोड़ा)। नहीं है रे मेरे यहां जगह। और न खाने के लिए राशन है। वह भी इस वक्त? रात होने को, चार-चार जने? एक मैं ही लगता हूं बल इनका मित्र? और मर गये हैं। चनरदा गुस्से से आंखों को सिर पर रखकर जोर से कह रहा था, ताकि मेहमान भी सुनें और उसके दूसरे भाई-भतीजे भी। जाओ बल जहां जाते हो।
सही बात भी हुई। 15 जनों की परिवार उसकी रोज की है। कमाई कभी हुई कभी नही। लड़के अपनी कमाई से देते हैं नही। खायेंगे बाप की ही। एक पागल दामाद है काम करता कुछ है नही, दिन भर बालों में कंघी करता रहता है। आठ-दस सालों से लडकी, दामाद व बच्चों सहित यहीं है। दो नाती स्कूल जाते हैं। तीन बेटे हो गए और तीन उनकी बहुएं। एक-एक उनका बच्चा। चंदा 60-65 साल का बुढ्ढा है। 8-10 बकरियां पाल रखी हैं। उन्ही का ग्वाला जाता है। कभी किसी की ब्याह-सादी, नौर्त हो गए तो दो पैसे देखने में आ जाते हैं। हिसाब-किताब कम जानता है। भाई-भतीजे ठग देते हैं। जितना मिल गया उसी में खुश रहता है। अड़चन आने पर बकरी ही बेच दी। तीसरे-चौथे दिन पव्वा भी लगाना ही हुआ। लोग कहते हैं धन शाबासी इस चंदा को। कैसे पाल देता है इतनी बडी परिवार? इसके बाद भी हर समय खुश रहता है। हँसते रहेगा। पूजा-पाठ, ब्याह-सादी में खूब खर्च करता है।
चंदा को उस समय तो बहुत गुस्सा आया। पर दयालु व्यक्ति को जल्दी दया भी आ जाती है। सोच रहा है इतनी रात को कहाँ जाएंगे ये बेचारे। आदमी आशा के कारण तो आता है। नाती को जोर से आवाज मार के कहता है-जा रे नाती पार गंङ पार से मेहमान आये हैं घर को बुला ला। और हां सेठ जी की दुकान से चार किलो चावल, आधा किलो अरहर, मसाले, तेल, टमाटर वगैरह ले आ। ये ₹ 50 हैं दे आना, बांकी लिख देंगे। शाम के वक्त बनिए उधार नही देते हैं। जा यार नाती दौड़कर जा। जल्दी कर रात हो रही है। कुछ देर में नाती मेहमानों और सामान सहित घर पहुंच गया।