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छठ महापर्व 2024: जानें तारीखें और महत्व

देहरादून: हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार, छठ पूजा, इस साल 5 नवंबर से 8 नवंबर तक मनाया जाएगा। यह पर्व सूर्य देव और छठी माता को समर्पित है, और इसे स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली के लिए मनाया जाता है।
छठ पूजा 2024 का कैलेंडर:
* 5 नवंबर (मंगलवार): नहाय खाय – इस दिन व्रत रखने वाले लोग स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन करते हैं।
* 6 नवंबर (बुधवार): खरना – इस दिन व्रती निराहार रहते हैं और खीर बनाते हैं।
* 7 नवंबर (गुरुवार): संध्या अर्घ्य – इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
* 8 नवंबर (शुक्रवार): उषा अर्घ्य – इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और व्रत खोला जाता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। यह पर्व सूर्य देव को समर्पित है, जिन्हें जीवनदाता माना जाता है। छठी माता को संतान की देवी माना जाता है, इसलिए इस पर्व पर लोग संतान की खुशहाली और लंबी उम्र की कामना करते हैं।
छठ पूजा के दौरान व्रती निराहार रहते हैं और सूर्य देव की पूजा करते हैं। इस पर्व को मनाने के लिए विशेष प्रकार के प्रसाद बनाए जाते हैं, जैसे कि ठेकुआ, पूड़ी, और चूरमा।
छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है सूर्य देव को अर्घ्य देना। व्रती डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और उनसे अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं।
छठ पूजा की परंपराएं
छठ पूजा की अपनी कुछ विशेष परंपराएं हैं। इस पर्व के दौरान लोग नदी या तालाब में जाकर स्नान करते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। इस दौरान लोग व्रत रखते हैं और शुद्ध भोजन करते हैं।
छठ पर्व कैसे मनाया जाता है?
• छठ पर्व के पहले दिन नहाय खाय  के साथ पर्व की शुरुआत होती है। इस विशेष अवसर पर पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन महिलाएं दिन में एक बार भोजन करती हैं।  
• दूसरे दिन को खरना  कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत रखती हैं और पानी नहीं पीती हैं।
•  तीसरे दिन भी नर्जला व्रत रखा जाता है और सूर्यास्त को अर्घ्य दिया जाता है।
• त्योहार के अंतिम  दिन, महिलाएं सुबह सूर्य को उषा अर्घ्य देती हैं और शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करती हैं। 
इन बातों का रखें ध्यान
• छठ पूजा के दौरान बर्तन या पूजा सामग्री को किसी दूसरे के हाथ से नहीं छूना चाहिए। मन जाता है कि ऐसा करने से व्रती का व्रत खंडित हो जाता है। 
• महापर्व के दौरान सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए।   
• इसके अलावा पुराने बर्तनों का प्रयोग वर्जित होता है। 

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