लॉकडावन में बेरोजगारी की वजह से मिली बगीचा लगाने की प्रेरणा
धानाचूली। अगर इंसान मन में कुछ करने की ठान ले तो उसे जरूर मंजिल मिलती है। चाहे उसमें उतार-चढ़ाव कितने ही आए। ऐसी ही कहानी मुक्तेश्वर के एक प्रगतिशील बागवान की है। जिन्होंने दो साल पहले हुए हुए लॉकडाउन (कोरोना काल) में बेरोजगारी से सबक लेते हुए एक सघन बागवानी के तहत सेब का बगीचा तैयार कर दिया है। जो स्थानीय बागवानों और युवाओं के लिए एक मिसाल बन गया है। वही आज उनकी बगीचे को लेकर अलग पहचान की चर्चाएं पूरे क्षेत्र में है।
आपको बताते चलें नैनीताल जनपद के धारी विकासखंड गांव गजार के निवासी देवेंद्र सिंह बिष्ट ने कोरोना काल मे बेरोजगारी से सबक लेते हुए 20 नाली में भूमि में उन्न्त किस्म के 1200 सेब पेड़ों का एक बगीचा तैयार किया है । कोरोना काल मे जब उनका नीलकंठ नाम से चल रहा रेस्टोरेंट ठप हो गया तो उन्होंने सेव का बगीचा बनाने की ठान ली। देवेंद्र अपनी व परिवार की मेहनत से आज इस बगीचे को 50 नाली से अधिक क्षेत्र में फैला दिया है।जिसमे सेब के पेडों को संख्या 3,500 से अधिक पहुंचा दी है। वही मिशन बागवानी के तहत उत्तराखंड सरकार की मदद से 3.50 लाख का अनुदान जमा कर रूट स्टॉक सघन बागवानी के तहत उन्होंने अपने 30 साल से बंजर पड़े खेतों में बगीचा तैयार किया है।
देवेंद्र ने बताया की लॉकडाउन में जब कुछ भी कार्य नहीं था। आमदनी बन्द हो गयी तो उन्होंने इस क्षेत्र में बागवानी की अपार संभावनाओं को देखते हुए सघन बागवानी करने का सोचा। उन्होंने पूरे लॉकडाउन के भीतर अपने खेतों में परिवार की मेहनत से सेब की कई प्रजातियों के बगीचा तैयार किया।
सेव के बगीचे से पहले ही साल लिया फल
देवेन्द्र ने बताया पहले ही वर्ष 8 अप्रैल 20 को सेब का बगीचा लगाया। जिस का परिणाम सैंपल के तौर पर 27 अगस्त 2020 को उन्हें अच्छा प्राप्त हुआ। इसके बाद 2021 में उन्होंने तकरीबन चार लाख से ऊपर की आमदनी 1200 पेड़ों से अर्जित की। जबकि 2022 में यह आमदनी 6 लाख से ऊपर पहुँच गयी। उन्होंने क्षेत्र के युवाओ को इस बागवानी से जुड़ कर स्वरोजगार अपनाना चाहिए।
अंशदान की राशि ऋण लेकर की जमा
देवेंद्र बिष्ट बताते हैं कि उन्होंने अंशदान की धनराशि को जमा करना पड़ता है। सघन बागवानी उद्यान विभाग से मिली मदद के एवज में 3.50 लाख रुपये जमा करना पड़ा। जिससे उन्हें इस योजना का लाभ मिल सके। वही पैसा जमा करने के लिए एलआईसी पॉलिसी से साढ़े तीन लाख का ऋण लिया ।जिसकी किस्त वह आज भी जमा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अभी तक 50 नाली जमीन पर वह 3500 हजार से अधिक सेब के पौध लगा चुके हैं। जिसका लाभ होने आने वाले वर्षों में मिलेगा। उन्होंने स्थानीय युवाओं और बागवानी से अपील की कि अगर युवा स्वरोजगार को अपनाना चाहते हैं तो वह इस बागवानी की तरफ आए। जिससे आने वाले सालों में कई हजार करोड़ का उत्तराखंड सेब पर बिजनेस कर सकता है।
छोटी जोत के किसानों के लिए नहीं है कोई योजना
देवेंद्र बिष्ट ने बताया कि पहाड़ में अधिकांश किसान छोटी जोत के हैं अगर उनका एक खेत यहां है तो दूसरा तकरीबन आधा किलोमीटर दूर ,ऐसे में सघन बागवानी के लिए 10 नाली भूमि का मानक जो सरकार ने रखा है। वह गलत है ।उसे एक दो नाली में भी चयनित कर उन्हें अनुदान के माध्यम से इस सघन बागवानी में सरकार जोड़े। वही सरकार की पॉलिसी है दीन दयाल उपाध्याय योजना के तहत किसानों को ऋण देकर इस योजना से जोड़ा जाय। जबकि पहाड़ का अधिकांश किसान केसीसी ,बैंक , आढ़ती और बनियों से पहले ही दबा हुआ है। ऐसे में दीनदयाल उपाध्याय योजना का लाभ कैसे ले सकते हैं। इसके लिए उन्होंने उद्यान सचिव व मुख्यमंत्री से मांग की कि इस योजना को एक दो नाली के लिए भी चयनित करें ताकि पहाड़ के युवाओं को रोजगार मिल सके और उनकी आमदनी दुगनी हो सके। और पलायन पर भी रोक लग सके।
बर्फ़बारी व बारिश ना होना सेब सहित अन्य फसलों के लिए संकट
बागवान देवेन्द्र सिंह बिष्ट का कहना है कि इस वर्ष अभी तक बर्फ़बारी व बारिश नहीं हुई है। जिसका असर पहाड़ की सभी प्रकार की खेती पर पड़ने गला है। उन्होंने बताया कि बर्फबारी ना होने से सेव, नाशपाती, आडू, पूलम, खुमानी सहित आलू और रवि की फसल को सीधा नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि इस वर्ष अभी तक एक बार भी क्षेत्र में बर्फबारी नहीं हुई है वही फसल पर इसका 50 फीसदी से ऊपर असर पड़ने के आसार हैं। आजकल पानी के स्रोत सूखने लगे हैं जिससे गर्मियों में पानी के संकट से भी जूझना पड़ेगा । सरकार को क्षेत्र का मुआयना कर इसे सूखाग्रस्त घोषित करना चाहिए।