पहाड़ों में होने वाले पौंधे का बीज है रत्ती, जो कभी मापने के लिए होता था इसका प्रयोग
हल्द्वानी। “रत्ती” शब्द अक्सर सुनने को मिलता है। “रत्ती भर भी परवाह नहीं, रत्ती भर भी शर्म नहीं, रत्ती भर भी अक्ल नहीं” वगैरह…। लेकिन अधिकतर लोग रत्ती शब्द कहां से आया और रत्ती क्या है नहीं जानते हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रत्ती एक पौंधे का फल है। पहाड़ों में यह पौंधा उगता है। इस पौंधे में मटर जैसी फली लगती है और फली के अंदर लाल-काले रंग के दाने (बीज) होते हैं, जिन्हें रत्ती कहा जाता है। प्राचीन काल में जब मापने का कोई सही पैमाना नहीं था तब सोना, जेवरात का वजन मापने के लिए इसी रत्ती के दाने का इस्तेमाल किया जाता था।
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि इस फली के बीजों का वजन एक समान ही 121.5 मिलीग्राम (एक ग्राम का लगभग 8वां भाग) होता है। वजन में एक समान होने के विशिष्ट गुण की वजह से कुछ मापने के लिए जैसे रत्ती प्रयोग में लाते हैं।
क्या होता है रत्ती का पौधा
गुंजा या रत्ती के पौधे से बहुत सी दवाएं बनाई जाती हैं। आयुर्वेद में इस पौधे का बहुत महत्व है। गुंजा के पौधे से बनी दवाओं से टिटनेस, ल्यूकोडर्मा (स्किन इंफेक्शन) और सांप के काटने का इलाज भी होता है। इसे वात और पित्त की बीमारियों के इलाज में कारगर माना जाता है।
क्या है इस पौधे का इतिहास
पुराने समय में सुनार कीमती रत्नों और सोने को तोलने के लिए गुंजा के पौधे के बीज यानी रत्ती का इस्तेमाल करते थे। एक रत्ती के बीज का वजन 125 मिलीग्राम माना जाता था। अब इसे 105 मिलीग्राम माना जाता है। अब अगर कोई आपसे कहे कि उसे “रत्ती” भर भी यकीन नहीं है, तो अब आप इस मुहावरे का मतलब आसानी से समझ सकते हैं। वैसे रत्ती में कुछ जादुई गुण भी पाए जाते हैं।