हरिद्वार

विदेशों में सम्मानित हिंदी अपने ही देश में उपेक्षित- डा. महावीर

श्रवण सेवा एवं शोध संस्थान का ‘हिंदी समारोह’, जनमानस हिंदी को स्वीकारने की मानसिकता बनाए-अरुण पाठक
हरिद्वार। “
यह विडंबना है कि वह हिंदी जिसे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन हो जाना चाहिए था, आज विदेशों में सम्मानित होने के बावजूद, हमारे अपने देश भारतवर्ष में स्वतंत्रता प्राप्ति के 76 वर्ष बीत जाने के बाद भी स्वयं को अपमानित करती चली आ रही है।”
       उक्त विचार प्रेस क्लब तथा श्रवण सेवा एवं शोध संस्थान,  हरिद्वार के संयुक्त तत्वावधान में हरिद्वार प्रेस क्लब सभागार में आयोजित ”हिन्दी विचार गोष्ठी’ के अन्तर्गत हिंदी व संस्कृत के विद्वान तथा पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डा. महावीर अग्रवाल ने मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि, “हिन्दी देश की न केवल एकमात्र सम्पर्क भाषा है, बल्कि, विभिन्न भाषा भाषियों को एकसूत्र में पिरो कर रखने का कार्य भी करती है।” उन्होंने अनेक उदाहरणों से समझाया कि हिंदी का विदेशी लोग बहुत सम्मान करते हैं। समारोह की अध्यक्षता कर रहे ‘चेतना पथ’ के सम्पादक, कवि और साहित्यकार अरुण कुमार पाठक ने कहा, कि “हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा न घोषित किये जाने के राजनैतिक व भौगोलिक कारण तो हैं ही, इससे बड़ा कारण यह है कि आज भी देश का आम जनमानस हिन्दी लिखने, पढ़ने और बोलने में ख़ुद में हीनता का अनुभव करता है, जबकि आँकड़ों अनुसार देश में हिंदीभाषी राज्यों और लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। जिस दिन देश का जनमानस हिन्दी के प्रयोग के लिये खुद की मानसिकता तैयार कर लेगा, हिन्दी स्वयं ही राष्ट्रभाषा बन जायेगी।”
      *हिंदी राष्ट्रभाषा बनाने के लिये करें प्रयास-* कार्यक्रम के आयोजन तथा श्रवण सेवा एवं शोध संस्थान के  संस्थापक सचिव डा. अशोक गिरि ने कहा कि, “संस्था का सबसे प्रमुख उद्देश्य हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाना है तथा संस्था इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सदैव तत्पर है।” उन्होंने आह्वान किया कि भारत के प्रत्येक हिंदी प्रेमी को अपनी ओर से इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु हर संभव प्रयास करने चाहिए। समाजसेवी की संजय सैनी ने कहा कि, “अब सर्वश्रेष्ठ समय आ गया है, जब हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाना चाहिए।” उन्होंने बताया कि संस्था आगामी वर्षों में हाई स्कूल की ही तरह इंटरमीडिएट में भी स्कूलों में हिंदी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को सम्मानित करने की योजना बना रहई है। यह हिंदी और भारत देश के हित में होगा। गोष्ठी में डा. एन.पी. सिंह ने ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य’, हरिद्वार प्रेस क्लब के महामंत्री डा. प्रदीप जोशी ने ‘हिन्दी के विकास में संचार माध्यमों की भूमिका’, डा. प्रेरणा पांडे ने ‘ भारतीय संविधान में राजभाषा प्रावधान’, डा. मोना शर्मा ने ‘हिन्दी की गद्य विधाओं‌ की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य’ विषय पर अपने विचार रखे। इसके अतिरिक्त विशिष्ट अतिथि श्री भानु प्रताप शर्मा, साहित्यकार एवं कवियित्री डा. मेनका त्रिपाठी, डा. विजय कुमार त्यागी, डा. विनीत अग्निहोत्री, रविन्द्र मिश्र आदि ने भी विचार गोष्ठी को सम्बोधित किया।
      माँ सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन तथा पुष्पार्पण के उपरान्त ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे’ पर वैष्णवी डांस क्रिएशन्स के बाल कलाकारों की नृत्य प्रस्तुति के साथ प्रारम्भ हुए इस कार्यक्रम के दूसरे सत्र में हरिद्वार के 46 स्कूलों में हाईस्कूल की परीक्षा में हिंदी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को उपहार तथा प्रमाण पत्रों से सम्मानित किया गया।
      कार्यक्रम के तीसरे और अंतिम सत्र में कवि गोष्ठी आयोजित हुई, जिसमें डा. विजय कुमार त्यागी, रेखा सिंघल, वैष्णवी झा, वृंदा शर्मा, अर्चना वालिया,  अपराजिता, डा. सुशील कुमार त्यागी ‘अमित’, राजकुमारी राजेश्वरी, संजय परगाईं आदि कवियों ने हिन्दी पर आधारित काव्य रचनाओं का पाठ कर तालियाँ बटोरीं। वैष्णवी झा ने कथक नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति भी दी। सभी अतिथियों को अंगवस्त्र, पुष्पहार व प्रतीक चिन्ह द्वारा सम्मानित करने के साथ-साथ प्रतिभागी कवियों‌ को भी सम्मानित किया गया। एड. कुणाल गिरि ने श्रवण सेवा एवं शोध संस्थान के उद्देश्यों की जानकारी दी।  डा. अशोक गिरि ने कार्यक्रम से सभी तीन सत्रों का संचालन किया तथा अंत में सभी अतिथिगण का धन्यवाद धन्यवाद किया।
       कार्यक्रम में गीतकार सुभाष मलिक, भूदत्त शर्मा, डा. कल्पना कुशवाहा, ब्रिजेंद्र हर्ष, सुमन पंत, नीता नैयर, अनिरुद्ध भाटी, विनीत जौली, बलराम गिरि, कुणाल, प्रमोद गिरि, पंकज गिरि, अभिषेक धीमान, कैलाश भट्ट, अमन दीप , कुलभूषण शर्मा, सुभाष कपिल, बालकृष्ण शास्त्री, दीपा माहेश्वरी, सुनील शर्मा आदि प्रमुखरूप से उपस्थित रहे।

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