नैनीताल। सूखाताल वेट लैंड लेक को लेकर हाईकोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर पंजीकृत की गई जनहित याचिका पर बुधवार को मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की खंडपीठ ने सुनवाई की। सुनवाई के दौरान राज्य पर्यावरण प्रभाव आंकलन प्राधिकरण उत्तराखंड ने उच्च न्यायालय के समक्ष अपना जवाब दाखिल कर कहा है कि सूखाताल झील विकास परियोजना के लिए सरकार ने कभी भी उसके समक्ष कोई आवेदन नहीं किया। प्राधिकरण ने यह भी कहा कि उक्त परियोजना के लिए उससे पर्यावरण मंजूरी लेना अनिवार्य था।
सुनवाई के बाद न्यायालय ने स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी उत्तराखंड को फिर से नोटिस जारी किया है। याचिका में दावा किया गया है कि सूखाताल एक आद्रभूमि क्षेत्र (वेटलैंड)है। मामले की अगली सुनवाई के लिए दिनांक 16 फरवरी की तिथि तय की गई है। आज सुनवाई के दौरान अतिक्रमण के मामले में बहस नहीं हुई । हाईकोर्ट ने इस मामले में अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता को न्यायमित्र नियुक्त किया है।
मामले के अनुसार नैनीताल निवासी डॉ. जीपी साह व अन्य ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश को पत्र लिखकर सूखाताल में हो रहे भारी भरकम निर्माण से झील के प्राकृतिक जल स्रोत बन्द होने सहित कई अन्य बिंदुओं से अवगत कराया था। पत्र में कहा है कि सूखाताल नैनी झील का मुख्य रिचार्जिंग केंद्र है और उसी स्थान पर अवैज्ञानिक तरीके से निर्माण किये जा रहे हैं। पत्र में यह भी कहा गया है कि सूखाताल क्षेत्र में लोगों ने अतिक्रमण कर पक्के मकान बना लिए जिनको अभी तक नहीं हटाया गया। पहले से ही झील के जल स्रोत सूख चुके हैं जिसका असर नैनी झील पर देखने को मिल रहा है। कई गरीब परिवार मस्जिद के पास के जल स्रोत से पानी पिया करते हैं अगर वो भी सूख गया तो ये लोग पानी कहां से पिया करेंगे। इसलिए इस पर रोक लगाई जाए। पूर्व में कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश ने इस पत्र पर स्वतः लेकर इसे जनहित याचिका के रूप में सुनवाई के लिए पंजीकृत कराया था।
हाईकोर्ट न्यूज:16 फरवरी को होगी सूखाताल वेट लैंड मामले में अगली सुनवाई
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