नई दिल्ली

संगतक असर…नानि काथ

(खुशाल सिंह खनी)
अल्मोड़ा। एक गौं में सामूहिक भोजन क बाद कुछ जूठ-पिठ रस्यापन छूटि गोछ्यू। जब उलै बटिक सबै मैस ल्है गैछी। तब उ जूठ में एक कौवकि नजरि पड़ि गै।
कौवलि एक बोट में जाबेर जोरलि कांव-कांव कैबेर आपण बिरादरी कैं बुलै ल्हे। यसिकै दूसार चाड़ घुघुत, सींटाव, कटकटौरी न कि लै नजर पड़ै उनलि लै आपणि-आपणि बोलि-भाष में बीरादरी कैं बुला ल्हे। तदुक में एक कुकुर कि नजर उ लै पड़ी उ दौड़बेर आबेर जूठ कैं खाण फैटौ। उ कै देखिबेर एक दूसर कुकुर
लै आ गै। तब पैंल कुकुर रीसलि ग्वां-ग्वां कनै उ छै कुना खबरदार! तू यैला झन आये रे।
यैला पैली मै आ रैयी य सब म्यर छ। तब दूसर कुकुर लि लै गुराट करन करनै कै जा जा रे! तू को हुंछै तस कूण हैं। य त्यर बाबुक जै के छ? य कैं मै लै खून। यस कन-कनै द्विये कुकुर न में अंङाव जूती लड़ै हैगै। जूठ लै माट में मिलण फैगै। उनन देखिबेर सयाण कौवलि उनन कैं नड़क्या बेर कै-के हरौ रे तुमन? तुमनि त हमरि लै नखाणि करि हालै। जूठ कैं माट में मिला हालौ। तस सुवारथ त मैस करनी तुम मैस जै के छौ यार। तब दूसर कौवलि कै अरे तौं मैस त नहांतिन पर मैसाक दगाड़ त रूनी। संगतक असर त हुनेरै भै।

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