नई दिल्ली। तंबाकू की लत कैंसर की कोशिकाओं को तीन गुना घातक बना रही है। पान मसाला, गुटखा जैसे धुआं रहित उत्पादों के साथ-साथ बीड़ी और सिगरेट का लगभग एक जैसा प्रभाव शरीर पर पड़ रहा है, जिसकी वजह से कैंसर सक्रिय हो जाता है।
यह जानकारी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक अध्ययन में सामने आई है, जिसमें साफ तौर पर कहा है कि तंबाकू की लत का पुरुष या महिला में कोई अंतर नहीं है। दोनों में ही कैंसर का जोखिम करीब 2.60 से 3.10 फीसदी तक मिला है। इसका सबसे बड़ा जोखिम यह भी है कि मरीजों को नहीं इलाज के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता, क्योंकि ज्यादातर मामले सीधे दूसरी या तीसरी स्टेज में जाकर पकड़ में आते हैं। इसलिए अन्य कारणों से कैंसर की चपेट में आने वाले मरीजों की तुलना में तंबाकू की वजह से कैंसर वाले रोगियों का जान का जोखिम ज्यादा है। भारत में वर्तमान में तंबाकू का उपयोग 32.8% है, जिसमें 12.6% धूम्रपान करने वाले और 24.7% धुआं रहित तंबाकू उपयोगकर्ता शामिल हैं।
2.71% ज्यादा जोखिम
ग्लोबल ऑन्कोलॉजी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. प्रशांत माथुर ने बताया कि धुआं और धुआं रहित तंबाकू से जुड़े किसी भी कैंसर का जोखिम क्रमशः 2.71 और 2.68% पाया गया। इनके लती लोगों में श्वसन प्रणाली के कैंसर का जोखिम 4.97 और गर्दन के कैंसर का 3.95 गुना जोखिम मिला है। उन्होंने कहा, कैंसर को लेकर ऐसा माना जाता है कि भारत में नौ में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर हो सकता है। यह भी तथ्य मौजूद है कि 2020 की तुलना में अगले साल 2025 में कैंसर के रोगियों की व्यापकता 12.8% बढ़ने का अनुमान है।
बीते कुछ समय में सरकार ने कैंसर के खिलाफ लड़ाई तेज की है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी अस्पतालों में तंबाकू छुड़वाने के लिए ओपीडी को अनिवार्य किया है। इसके लिए सभी राज्यों के साथ मिलकर प्रत्येक अस्पताल में तंबाकू छुड़वाने को लेकर अलग से एक विभाग बनाया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने सभी मेडिकल कॉलेजों में नशा मुक्ति अभियान लागू किया है।
हर सरकारी अस्पताल में तंबाकू छुड़वाने के लिए बनेगा अलग से एक विभाग
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