“बिंदुखत्ता राजस्व गांव का सवाल और वनाधिकार कानून” पर संगोष्ठी आयोजित
बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की समिति नहीं, विफल विधायक की सुरक्षा समिति है : इंद्रेश मैखुरी
राज्य सरकार से बिंदुखत्ता की भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया तत्काल शुरू करने की मांग
राजस्व गांव के लिए संघर्ष तेज करने के संकल्प का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित
लालकुआँ। अखिल भारतीय किसान महासभा द्वारा “बिंदुखत्ता राजस्व गांव का सवाल और वनाधिकार कानून” विषयक संगोष्ठी प्रतिभा बाल विद्यालय, कार रोड, बिंदुखत्ता के प्रांगण में आयोजित की गई। संगोष्ठी की शुरुआत किसान महासभा के सक्रिय साथी रहे गोपाल सिंह बोरा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक मिनट के मौन के साथ हुई, जिनका विगत 31 जुलाई को आकस्मिक निधन हो गया था।
संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा ने कहा कि, “भाजपा की डबल इंजन सरकार बिंदुखत्ता राजस्व गांव के सवाल को भटकाने में लगी है। बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है जो भाजपा के पास नहीं है। वनाधिकार का मुद्दा सामने लाकर भाजपा इसको भटका रही है।” उन्होंने कहा कि, “वनाधिकार के दावों को लेकर अगर सरकार इतनी गंभीर है तो राज्य सरकार को बताना चाहिए कि 2006 में कानून बनने के बाद के इतने वर्षों में दस हजार से ज्यादा दावे सरकार के पास लंबित हैं उनका निपटारा क्यों नहीं हुआ? पूरे देश में भी आदिवासियों को वनाधिकार के तहत हक मिलने का प्रतिशत बहुत ही कम है। 2019 तक 14.77 लाख आदिवासियों और परंपरागत वन निवासियों के वनाधिकार के दावे निरस्त हो चुके थे।”
उन्होंने बताया कि, “किसान महासभा पूरे देश में आदिवासी संघर्ष मोर्चा के नेतृत्व में देश के तमाम राज्यों में वनाधिकार को लागू करने के लिए चल रहे आन्दोलन में साथ है। लेकिन बिंदुखत्ता का मामला भूमि हस्तांतरण से संबंधित है न कि वनाधिकार कानून से। इसके लिए राज्य सरकार को राजनीतिक निर्णय लेना है लेकिन अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने के लिए मुख्यमंत्री और विधायक मुद्दे को भरमा रहे हैं।
इसी भाजपा की केंद्र सरकार ने संसद में नया वन संरक्षण कानून पारित किया है। 1927 के वन कानून में भी इस सरकार ने व्यापक संशोधन प्रस्तावित किए हैं। वन कानूनों में ये दोनों संशोधन वनाधिकार कानून 2006 की मूल भावना पर हमला हैं और उसके तहत मिलने वाले अधिकारों पर कुठाराघात है। इन नए कानूनों के आने के बाद आदिवासी वनवासियों का जीवन और भी कठिन होने जा रहा है। इसीलिए पूरे देश के आदिवासी और परंपरागत वन निवासी इन संशोधनों का विरोध कर रहे हैं। इन कानूनों में सरकार उत्पादक वन की नई श्रेणी बना रही है। इसका मकसद वन भूमि को खाली कर कारपोरेट के हवाले करना है। इसलिए वनाधिकार पर भ्रमित करना छोड़ राज्य सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाए और भूमि हस्तांतरण की कार्यवाही अमल में लाए।”
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए भाकपा माले राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि, “बिंदुखत्ता को राजस्व गांव का दर्जा देने का मामला, उलझने के पीछे राजनीतिक छल ही मुख्य कारण है. सत्ताधारियों की मंशा होती तो बिंदुखत्ता दशकों पहले राजस्व गांव बन चुका होता. केंद्र और राज्य में वर्षों से भाजपा का डबल इंजन है. भाजपा बिंदुखत्ता का वोट तो पाना चाहती है पर कोई अधिकार नहीं देना चाहती. डबल इंजन बिंदुखत्ता को उसका हक तो नहीं दिलवा सका पर भाजपा ने उसे अतिक्रमणकारी जरूर घोषित करवा दिया.
स्थानीय विधायक के संरक्षण में वनाधिकार के जरिये बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का जो शिगूफा छेड़ा जा रहा है, वो बिंदुखत्ता की जनता की आँखों में धूल झोंकने की एक और कोशिश है. यह समिति बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की समिति नहीं, विफल विधायक की सुरक्षा समिति है.”
उन्होंने कहा कि, “बिंदुखत्ता का यह इतिहास है कि शासक हमेशा उसे ठगना चाहते हैं और बिंदुखत्ता लाल झंडा थाम कर संघर्ष करके अपने अधिकार हासिल करता रहा है. आगे की लड़ाई का रास्ता भी यही है. एकताबद्ध संघर्ष और सही राजनीतिक दिशा ही बिंदुखत्ता को उसका वाजिब हक दिलवायेगी.
भाजपा ने जिस जनता के दम पर प्रचंड बहुमत हासिल किया, आज वह उन्हें उजाड़ने पर उतर आई है. पचास वर्ष से अधिक पुरानी बसासतों को अतिक्रमणकारी घोषित करके उजाड़ने की दिशा में भाजपा सरकार बढ़ गयी है. गरीब- मेहनतकशों को उजाड़ने का यह अभियान भाजपा सरकार इसलिए चला रही है ताकि वह इन जमीनों को अपने पूंजीपति मित्रों के हवाले कर सके. गरीब- मेहनतकशों को उजाड़ने के इस अभियान के लिए मजबूती से लड़ने की जरूरत है. मेहनतकशों की जमीन हड़पने का षड्यंत्र करने वालों के पैरों के नीचे से राजनीतिक जमीन खींच ली जानी चाहिए.”
संगोष्ठी में बिंदुखत्ता की भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया तत्काल शुरू करने की मांग राज्य सरकार से की गई। साथ ही राजस्व गांव के लिए संघर्ष तेज करने के संकल्प का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता किसान महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष बहादुर सिंह जंगी ने की। संगोष्ठी को मुख्य रूप से किसान महासभा के जिलाध्यक्ष भुवन जोशी, पूर्व सैनिक कुन्दन सिंह मेहता, कांग्रेस अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष रमेश, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की पुष्पा, हाई कोर्ट के एडवोकेट दुर्गा सिंह मेहता, ट्रेड यूनियन लीडर किशन बघरी, माले नैनीताल जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय, माले उधम सिंह नगर जिला सचिव ललित मटियाली आदि ने सम्बोधित किया। संगोष्ठी में विमला रौथाण, एडवोकेट एस डी जोशी, आइसा राज्य सचिव धीरज कुमार, गोविंद सिंह जीना, पुष्कर सिंह दुबड़िया, चन्दन राम, बिशन दत्त जोशी, बलदेव सिंह कार्की, प्रवीण दानू, आंनद सिंह जग्गी, हरीश भंडारी, रोबिन प्रसाद, त्रिलोक राम, प्रमोद कुमार, ललित जोशी,नैन सिंह कोरंगा, मदन सिंह धामी, कुन्दन सिंह, बसंत बल्लभ, किशन राम, मोहन सिंह बिष्ट, मनोज कुमार, त्रिलोक सिंह दानू, हीरा सिंह नेगी, इंदु मणि, त्रिलोचन, हीरा सिंह, अखिलेश कुमार, स्वरूप सिंह दानू, गोपाल सिंह बिष्ट, देव सिंह देवली, भीम गिरी गोस्वामी, दौलत सिंह कार्की, भवान सिंह, लक्ष्मी दत्त, गिरीश चन्द्र जोशी, निर्मला शाही, विजय लक्ष्मी, मेहरून खातून, आंनद बल्लभ जोशी, प्रभात पाल, शिवा सिंह, गोपाल गड़िया, ललित मटियाली, पनी राम, चन्नर आदि मुख्य रूप से शामिल रहे।