हल्द्वानी: रानीबाग में मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित उत्तरायणी मेले में कत्यूरी वंशजों ने पारंपरिक उत्साह के साथ जागर लगाकर अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवंत किया। इस ऐतिहासिक मेले में दूर-दूर से आए कत्यूरी वंशजों ने पारंपरिक वेशभूषा में जियारानी की गुफा में पूजा-अर्चना की और ढोल-दमाऊ की थाप पर पारंपरिक लोक गीत गाए।
रानीबाग का नाम यहां की वीर रानी मौला देवी से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि रानी मौला देवी ने इस स्थान पर अपनी सेना गठित की थी और यहां एक सुंदर बाग भी तैयार किया था। इसीलिए इस स्थान का नाम रानीबाग पड़ा।
मेले में क्या हुआ:
* पारंपरिक वेशभूषा: कत्यूरी वंशज पारंपरिक वेशभूषा में मेले में शामिल हुए।
* धार्मिक अनुष्ठान: जियारानी की गुफा में पूजा-अर्चना की गई।
* लोक संगीत: ढोल-दमाऊ की थाप पर पारंपरिक लोक गीत गाए गए।
* भोजन और आवास: युवाओं ने श्रद्धालुओं के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था की।
* स्नान: श्रद्धालुओं ने गार्गी नदी में स्नान किया।
मेले का महत्व:
यह मेला कत्यूरी वंशजों के लिए अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह मेला रानी मौला देवी की वीरता और साहस को भी याद दिलाता है।
कौन-कौन शामिल हुआ:
अल्मोड़ा, रानीखेत, सल्ट, बिंदुखत्ता, लालकुआं, भतरौजखान और भिकियासैंण से आए श्रद्धालुओं ने इस मेले में भाग लिया।
आयोजन में शामिल लोग:
विश्व दीपक तिवारी, धीरज बिष्ट, नवल किशोर बिष्ट, महेश भंडारी, महेश पाठक, प्रकाश पाठक, आनंद कुजरवाल, रमा पांडे, सरिता बिष्ट, प्रकाश बिजवासी, संजय साह, बीना मेहरा और कविता साह आदि ने इस आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिक्षक और इतिहासकार दीपक नौगांई ने बताया कि यहां हर साल कत्यूरी समाज के लोग जागर लगाते हैं।