नैनी (चौर्गखा)अल्मोड़ा। उत्तराखण्ड का लोक पर्व हरेला ऋतु परिवर्तन के साथ जुड़ा हुआ है। यह पर्व नई ऋतु के शुरु होने की सूचना देता है, उत्तराखण्ड में तीन ऋतुओं ग्रीष्म और वर्षा और शीत ऋतुओं को हरेला पर्व मनाया जाता है। इस दिन वृक्षारोपण भी किया जाता है।
वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण (सावन) महीने से होने के कारण एक गते, श्रावण को हरेला मनाया जाता है। शीत ऋतु की शुरुआत आश्विन मास से होती है और इसी के अनुसार आश्विन मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है।
ऋतु की सूचना को सुगम बनाने और कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण ऋतुओं का स्वागत करने की परम्परा प्राचीन समय से उत्तराखण्ड में रही है और इसी अनुसार तीनो ऋतुओं में हरेला बोया जाता रहा है। चैत्र मास के प्रथम दिन हरेला बोया जाता है और इसे नवमी को काटा जाता है।
वही श्रावण मास लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ मास में हरेला बोया जाता है और 10 दिन बाद काटा जाता है। आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरे के दिन काटा जाता है। हरेला घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया व काटा जाता है। हरेला अच्छी कृषि का सूचक है, हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलो को नुकसान ना हो। हरेले के साथ जुड़ी ये मान्यता भी है कि जिसका हरेला बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा।
लोकपर्व हरेला आज, पारंपरिक तरीके से मनाया
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