देहरादून: उत्तराखंड में शिक्षा विभाग के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। राज्य में 2,906 सहायक अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद, कई शिक्षक पहाड़ी जिलों में नौकरी ज्वाइन करने के बजाय सुविधाजनक जिलों में जाने के लिए नौकरी छोड़ रहे हैं।
पहाड़ी जिलों में शिक्षकों की कमी:
शिक्षा निदेशालय के मुताबिक, चार चरणों की काउंसलिंग के बाद 2,296 शिक्षकों का चयन किया जा चुका है और अधिकांश को नियुक्तिपत्र भी दे दिए गए हैं। हालांकि, पहाड़ी जिलों में जिन अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था, उनमें से कई नौकरी ज्वाइन करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे सुविधाजनक जिलों में जाने के लिए पहाड़ी जिलों की नौकरी छोड़ रहे हैं।
विभाग ने मांगी जानकारी:
इस समस्या को देखते हुए शिक्षा निदेशालय ने सभी जिलों से नौकरी छोड़ने वाले शिक्षकों की जानकारी मांगी है। अपर शिक्षा निदेशक आरएल आर्य के मुताबिक, अब तक रुद्रप्रयाग जिले में छह और पौड़ी जिले में आठ नवनियुक्त शिक्षक नौकरी छोड़ चुके हैं। हालांकि, उत्तरकाशी जिले में इस तरह के शिक्षकों की संख्या शून्य है, जबकि अन्य जिलों से अभी इसकी सूचना आनी बाकी है।
पहाड़ी जिलों में शिक्षा व्यवस्था पर असर:
शिक्षकों के इस तरह से नौकरी छोड़ने से पहाड़ी जिलों में शिक्षा व्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। इन जिलों में पहले से ही शिक्षकों की कमी है और अब इस समस्या और बढ़ गई है।
क्या हैं कारण:
* सुविधाएं: पहाड़ी जिलों में सुविधाओं की कमी के कारण शिक्षक यहां नौकरी नहीं करना चाहते हैं।
* पहुंच: पहाड़ी जिलों में सड़कें और अन्य बुनियादी सुविधाएं कम विकसित हैं, जिससे शिक्षकों को आने-जाने में दिक्कत होती है।
* सुरक्षा: कुछ शिक्षक पहाड़ी जिलों में सुरक्षा के मुद्दे को लेकर भी चिंतित रहते हैं।
समाधान:
इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को कुछ कदम उठाने होंगे, जैसे:
* पहाड़ी जिलों में सुविधाओं का विकास: शिक्षकों को आकर्षित करने के लिए पहाड़ी जिलों में शिक्षण संस्थानों में बेहतर सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।
* अतिरिक्त भत्ते: पहाड़ी जिलों में कार्य करने वाले शिक्षकों को अतिरिक्त भत्ते दिए जा सकते हैं।
* ट्रांसफर नीति में बदलाव: शिक्षकों के तबादले की नीति में बदलाव किया जा सकता है ताकि वे पहाड़ी जिलों में अधिक समय तक काम करने के लिए प्रेरित हों।