बाबा रामदेव गंगा तट से बोले, सनातन धर्म को युगधर्म बनाने का संकल्प
1-पट्टाभि सीता रमैय्या, लोकमान्य तिलक जी व गांधीजी से लेकर सभीने स्वीकार किया है कि स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में महर्षि दयानंद के क्रांतिकारी विचारों से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से प्रेरित रहे शिष्यों का बहुत बड़ा योगदान रहा है, डॉ श्यामजी कृष्ण वर्मा, भाई परमानंद, वीर सावरकर,लाला लाजपत राय,स्वामी श्रद्धानंद, तथा मदन लाल धींगरा, भगत सिंह आदि तथा पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों को महर्षि दयानंद जी ने प्रेरणा दी।
2- 200 साल पहले उन्होंने स्वदेशी, स्वराज्य व राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए सैद्धान्तिक तौर पर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रचारित करने का पुरुषार्थ किया।
3- स्त्रियों व शूद्रों को वेद पढ़ने से लेकर शिक्षा के अधिकारों का आंदोलन चलाया,आजादी से पहले शिक्षा का सबसे बड़ा गैर सरकारी आंदोलन महर्षि दयानंद जी की प्रेरणा डीएवी विद्यालयों व गुरुकुल कांगड़ी के माध्यम से प्रारंभ हुआ।
4-देश को जातिवाद, ढोंग, आडंबर, पाखंड अंधविश्वास और तमाम तरह के ऊंच-नीच,भेदभाव, छुआछूत से मुक्ति दिला करके सबको एक पूर्वज ऋषियों की संतान, भारत माता, धरती माता की संतान कहकर कहा कि हम सभी एक हैं, सभी श्रेष्ठ हैं, सभी समान व सभी को महान मानते हुए,भेदभाव का विरोध किया।
5- महर्षि दयानंद जी ने सनातन धर्म को राष्ट्रधर्म ही नहीं अपितु युगधर्म की संज्ञा दी तथा सनातन धर्म को सृष्टि के शाश्वत, सार्वभौमिक व सर्वहितकारी मूल्यों को ही धर्म मानते हुए तर्क, तथ्य व प्रमाण से वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर सनातन को विश्वधर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया।
6- महर्षि दयानंद वह महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने सभी मत, पंथ, संप्रदायों के अंदर कुरीतियों को दूर करने के लिए, उनको प्रीतिपूर्वक व साहस पूर्वक प्रेरित किया।
7- महर्षि दयानंद जी ने धर्म के नाम पर अवैज्ञानिक, अतार्किक, गली सड़ी प्रथाओं को नकारा,
वेदानुकूल श्रेष्ठ आचरण को ही जीवन का धर्म मानते हुए , मिलकर के संसार का उपकार व परोपकार को ही जीवन का उद्देश्य बताया, पूरे विश्व को एक परिवार समझे और उन्होंने आचरण की श्रेष्ठता को ही धर्म कहा।
8- छुआछूत,जाति-पाती व भेदभाव, ऊंच नीच, झूठ, पाखंड, आडंबर से देश को बाहर निकाला व महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने जन्म के आधार पर जाति व वर्णाश्रम का विरोध किया, तथा गुण, कर्म, स्वभाव की श्रेष्ठता के आधार पर मनुष्य को प्रतिपादित किया।
9- महर्षि दयानंद जी ने विलुप्त हो चुकी गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति की नींव रखी व पुनः प्रतिष्ठापना की।
10- देश को आर्थिक गुलामी,शिक्षा,चिकित्सा की गुलामी,सांस्कृतिक,वैचारिक,धार्मिक गुलामी से मुक्ति दिलाकर भारत को परमवैभवशाली बनाने का वैचारिक आधार महर्षि दयानंद जी ने सबसे पहले दिया।
महर्षि दयानंद एक कालजयी, युगप्रवर्तक महान समाज सुधारक महापुरुष थे, आधुनिक भारत के ऐसे युगदृष्टा संत थे, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में राजनैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, वैश्विक व शैक्षिक सरोकारों की नींव रखी। महर्षि दयानंद का भारतवर्ष के इतिहास में अत्यंत गौरवपूर्ण,गरिमापूर्ण व महत्वपूर्ण स्थान है, उन्होंने अपने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में राजधर्म,राष्ट्रधर्म,अध्यात्म धर्म,सनातन वैदिक ऋषिधर्म के संदर्भ में एक वैज्ञानिक दृष्टि हमें दी। जब
धर्म के बारे में लोगो ने तर्क, तथ्य को ताक पर रख दिया था, कुरूतियो को ही धर्म मान लिया था, महर्षि दयानंद जी ने तर्क, तथ्य,युक्ति, प्रमाण के आधार पर धर्म की विवेचना करने व सत्य के निर्णय करने का सशक्त माध्यम दिया।
एक सन्यासी का जीवन विविध क्षेत्रों में कितना व्यापक हो सकता है व सामर्थ्य महर्षि दयानंद ने जी के व्यक्तित्व चरित्र में दिखाई देती है।
महाऋषि दयानन्द ने कहा “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” अर्थात धरती हमारी मां है, और इसके लिए हमें अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहना चाहिए,राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि बता करके उन्होंने देश की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है।
और इस देश को जातिवाद, ढोंग ,आडंबर, पाखंड ,अंधविश्वास और तमाम तरह के ऊंच-नीच, भेदभाव,छुआछूत से मुक्ति दिला करके, सबको एक पूर्वज ऋषियों की संतान भारत माता, धरती माता की संतान कहकर के सबको समान व महान बताया तथा हम सभी एक हैं, सभी श्रेष्ठ हैं यह बोध हमको दिया है। महर्षि दयानंद जी ने हमारी बेड़ियों को , बैशाखियों को तोड़ते हुए हमें स्वालंबन का मार्ग दिखाया। पाखंड व भेदभाव के बाड़ों से बाहर निकालकर , पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ने का साहस देने वाले प्रथम महापुरुष महर्षि दयानंद जी थे।
महर्षि दयानंद ने कहा हमनें तो वेदो से लेकर के सारा ज्ञान पुरी दुनिया को दिया, हमे किसी बाहरी आयातित संस्कृति की आवश्यकता नही है, आयतित धर्मों की, आयातित विदेशी अप-संस्कृतियों व अविवेकपूर्ण अज्ञान की भारत को आवश्यकता नही है। विदेशी धर्म, संस्कृति उनके देश के लिए शुभ हो सकता हैं, मंगलकारी हो सकता हैं, लेकिन वह हमारे लिए मंगलकारी नहीं है,हमारे लिए तो मंगलकारी तो हमारे वेद है, हमारे दर्शन हैं, उपनिषद हैं, रामायण हैं, महाभारत हैं, भगवत गीता हैं, पुराण हैं हमारे पूर्वजों का इतना बड़ा ज्ञान हैं हमे किसी आयातित संस्कृति के भ्रम में नही रहना है।
आज उनकी जयंती पर उनको स्मरण करते हुए उनके सपनों का भारत बनाने के लिए हम जैसा महर्षि दयानंद चाहते थे वैसे ही इस देश में शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था हो, वैसी ही एक सामाजिक एकता की भावना हो, एक भारत और श्रेष्ठ भारत के जो उन्होंने गीत गाये हम सब मिलकर के उनके सपनों का भारत बनाएंगे,आज वक्त आ गया है कि हम अपने महापुरुषों को और उनके विचारों को और उनका जो योगदान इस देश के लिए रहा,उसको विराटता से देखें, आइए और उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प लेंवे।