लोकदेवता के बारे में भी जानेंगे, स्नातक प्रथम सेमेस्टर के पाठ्यक्रम में शामिल रहेंगी
नैनीताल। कुमाऊं विवि में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत स्नातक प्रथम सेमेस्टर के छात्र-छात्राएं कुमाऊं के प्रसिद्ध नंदा देवी महोत्सव, बग्वाल, पिथौरागढ़ की प्रसिद्ध हिलजात्रा, घुघतिया, हरेला, जौलजीबी मेला सहित मेले-त्योहार, कुमाऊंनी बोली का अध्ययन करेंगे। यह अब उनके पाठ्यक्रम में शामिल रहेंगी।
इससे कुमाऊं के छात्र-छात्राएं जड़ों से जुड़े रहेंगे जबकि दूसरे राज्यों के छात्रों को यहां की बोली-भाषा, लोक संस्कृति-तीज त्योहार के बारे में पता चलेगा। कुमाऊं विवि हिन्दी विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापक डा. शशि पाण्डे ने कुमाऊंनी संस्कृति एवं भाषा कौशल विकास पाठ्यक्रम नामक किताब की रचना की है।
शुक्रवार को कुमाऊं विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के मौके पर डीएसबी परिसर में आयोजित समारोह में कुलपति प्रो दीवार एस रावत, विवि की संस्थापक छात्रसंघ अध्यक्ष व पूर्व सांसद डा महेंद्र पाल, परिसर निदेशक प्रो नीता बोरा शर्मा, मंडी परिषद के अध्यक्ष डा अनिल कपूर डब्बू व कुमाऊं विवि कार्य परिषद सदस्य कैलाश जोशी ने किया।
कुलपति प्रो रावत ने प्रो पाण्डे को पुस्तक लेखन के लिए बधाई देते हुए कहा कि इससे पहाड़ की बोली-भाषा का संरक्षण होगा, साथ ही नई पीढ़ी अपने तीज-त्यौहारों, मेलों व लोकदेवताओं के बारे में जान सकेगी। इससे अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलेगा। इस मौके पर प्रो सावित्री जंतवाल, प्रो संजय पंत, प्रो एचसीएस बिष्ट, धनंजय बिष्ट, ज्योति, शालिनी, प्रो ललित तिवारी आदि मौजूद रहे।
डा शशि पाण्डे ने जागरण से बातचीत करते हुए किताब की विशेषताएं बताई। उन्होंने कहा कि पुस्तक में पहाड़ के लोकदेवता गोलज्यू, हरु-सैम, ऐड़ी, नंदा देवी, गंगनाथ, बाराही देवी, नयना देवी, बागनाथ, कलबिष्ट, जागेश्वर, ऋषेश्वर सहित अन्य देवी देवताओं के बारे में जानकारी दी गई है।
कुमाऊंनी की आठ-दस बोलियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। कुमाऊंनी व्याकरण का भी उल्लेख है। कुमाऊंनी में हिन्दी के शब्दों के वर्गीकरण भी बताया है, जैसे चावल को भात व धूप को घाम कहते हैं। डा पाण्डे के अनुसार यह किताब बीए प्रथम सेमेस्टर के साथ ही बीकाम व बीएससी प्रथम सेमेस्टर के पाठ्यक्रम में शामिल की गई है।
कुमाऊं विवि के छात्र-छात्राएं कुमाऊं के प्रसिद्ध मेले-त्योहार, कुमाऊंनी बोली का अध्ययन करेंगे
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