नैनीताल

हाईकोर्ट ने देहरादून के बिंदाल नदी क्षेत्र में अतिक्रमण विरोधी अभियान को लेकर सरकार से मांगा जवाब

नैनीताल। हाई कोर्ट ने देहरादून के बिंदाल नदी क्षेत्र में जिला प्रशासन की ओर से अतिक्रमण विरोधी अभियान से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 2021 में कोर्ट से पारित आदेश के अनुपालन में की गई कार्रवाई की स्टेटस रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
तब अदालत ने सरकार को पूरे राज्य के शहरी क्षेत्रों, वन भूमि, नदियों और अन्य सभी सरकारी स्वामित्व वाली भूमि को शामिल करते हुए सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण की सीमा का मूल्यांकन करने के लिए भारतीय सर्वेक्षण विभाग की सहायता से एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश पारित किया था।
मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ऋतु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में देहरादून की रीना पाल की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें कहा गया है कि नदी सूखने की स्थिति में है। नदी का अस्तित्व खतरे में है। इस दौरान सरकार की ओर से याचिका का विरोध करते हुए कहा कि हाई कोर्ट इसी तरह के एक मामले में 2021 में आदेश जारी कर चुका है।
इस पर याचिकाकर्ता के अधिवाक्ता ने जानकारी दी कि कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है। जिसके बाद कोर्ट ने पूछा कि उस आदेश के अनुपालन में क्या कार्रवाई की गई और सरकार को स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। हाई कोर्ट ने 2021 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया था कि दस निजी व्यक्तियों ने देहरादून में सरकारी जमीन पर मकान बनाकर अतिक्रमण किया है।
तब कोर्ट ने जिला प्रशासन को अतिक्रमणकारियों को उनका पक्ष सुनने का पर्याप्त अवसर देकर उनके विरुद्ध कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया था। इसके अलावा मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि सर्वे ऑफ इंडिया एक जनवरी 2020 से शुरू होकर तीन साल की अवधि के भीतर पूरे उत्तराखंड राज्य का सर्वेक्षण पूरा करे।
सर्वेक्षण में शहरीकरण की सीमा, वनों की सीमा के साथ ही जल निकायों, पहाड़ों और अन्य प्राकृतिक संसाधन भी शामिल होंगे। सर्वेक्षण में वायु की गुणवत्ता, जलवायु की स्थिति, विशेष रूप से, जलवायु की स्थिति में किसी भी तरह की क्षति को भी शामिल किया जाना चाहिए। सर्वेक्षण रिपोर्ट में की जाने वाली कार्रवाई के संबंध में सिफारिशें और उक्त कार्रवाई करने की समय सीमा शामिल होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना मुख्य सचिव की जिम्मेदारी होगी कि सिफारिशों को निर्धारित समय अवधि के भीतर विधिवत लागू किया जाए।

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