जोशीमठ आपदा के लिए सरकारी नीतियों को ठहराया जिम्मेदार, भिकियासैंण, हल्द्वानी समेत प्रदेश भर में दिया धरना
अल्मोड़ा। एन टी पी सी गो बैक, के नारे लगाते हुए, जोशीमठ की संघर्षशील जनता के साथ एकजुटता में भिकियासैण,हल्द्वानी समेत प्रदेश भर में भाकपा माले समेत विभिन्न जन संगठनों ने आज एक दिवसीय धरना दिया।
भाकपा माले के राज्यव्यापी आह्वान पर एकदिवसीय धरना आयोजित किया गया जिसमें भाकपा (माले), अंबेडकर मिशन एंड फाउंडेशन, बस्ती बचाओ संघर्ष समिति बनभूलपुरा, क्रालोस, ऐक्टू, अखिल भारतीय किसान महासभा, पछास, भीम आर्मी, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, यूकेडी आदि के प्रतिनिधि शामिल रहे। धरने के उपरांत उपजिलाधिकारी हल्द्वानी (नैनीताल) के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री को आठ सूत्रीय ज्ञापन भेजा गया।
धरने को संबोधित करते हुए भाकपा माले राज्य सचिव राजा बहुगुणा ने कहा कि, ‘उत्तराखंड का ऐतिहासिक जोशीमठ नगर एक अभूतपूर्व गंभीर संकट से गुजर रहा है. यह ऐसा संकट है जिसने इस महत्वपूर्ण शहर के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है. लेकिन इस संकट से निपटने के लिए जिस तत्परता और तेजी की आवश्यकता है, राज्य सरकार की कार्यवाही में वह नदारद है. इस संकट का एक पहलू यह भी है कि राज्य सरकार ने लगभग 14 महीने से इस संकट को लेकर जोशीमठ की जनता द्वारा दी जा रही चेतावनी को अनदेखा किया. पहले राज्य सरकार ने आसन्न संकट को अनदेखा किया और अब वह संकट से कच्छप गति से निपट रही है. बल्कि संकट के आंकड़ों को छुपाने के लिए ‘इसरो’ समेत सभी संस्थाओं को आपदा की जानकारी जनता को दिए जाने तक पर रोक लगा दी गई है। इस आपात स्थिति में प्रधानमंत्री को सीधे हस्तक्षेप कर रेसक्यू ऑपरेशन को जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के साथ तालमेल करते हुए, सीधे अपने हाथ में लेकर, युद्ध स्तर पर राहत कार्य को अंजाम देना चाहिए। ताकि राहत कार्य में बना गतिरोध अविलंब दूर हो सके। अन्यथा भारी जानमाल के नुकसान को रोक पाना दुष्कर कार्य साबित होगा। अब जोशीमठ हेतु पूर्ण जवाबदेही केंद्र सरकार की तय होनी चाहिए।”
ऐक्टू के प्रदेश महामंत्री के के बोरा ने कहा कि, ‘2013 की केदार आपदा के बाद भी केंद्र और राज्य सरकार का उत्तराखंड में विकास हेतु नीतियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है और केदारनाथ को कंक्रीट के जंगल में बदल दिया गया है। विनाशकारी जल विद्युत परियोजनाओं और चार धाम परियोजना को जारी रखा गया है, ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल मार्ग के निर्माण के दौरान भी कई जगह दरार पढ़ने की सूचनाएं मिल रही है। अभी भी समय है कि मध्य हिमालय के संवेदनशील इलाके में विकास की दिशा को जनपक्षीय बनाने के लिए एक नई कार्ययोजना तैयार की जाए अन्यथा आने वाले समय में बड़े जानमाल के संकट का खतरा अवश्यंभावी है।’
अन्य वक्ताओं ने कहा कि, “जोशीमठ को बचाने के लिए जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संघर्ष के साथ हम अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हैं। एन टी पी सी वापस जाओ का उनका नारा जनविरोधी विकास के मॉडल के विरुद्ध शानदार संघर्ष का प्रतीक बन गया है। इस परियोजना को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाय और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति को विश्वास में लेते हुए जोशीमठ के समग्र, उचित और सम्मानपूर्ण पुनर्वास की गारंटी की जाय।”
जोशीमठ से एकजुटता धरने में राजा बहुगुणा,जी आर टम्टा, के के बोरा, टी आर पांडे, बहादुर सिंह जंगी, रजनी जोशी, नफीस अहमद खान, कुमाऊं विश्वविद्यालय पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष गिरिजा पाठक, डा कैलाश पाण्डेय, मोहन मटियाली, हरीश लोधी, विमला रौथाण, एन डी जोशी, निर्मला शाही, कमल जोशी, महेश,चंद्र शेखर भट्ट, किशन बघरी, प्रकाश फुलोरिया, प्रभात पाल, मो फुरकान, बालकिशन राम, रितिक कांत, आनन्द सिंह दानू, अनिल कुमार, भवानी राम टम्टा, टुंपा चक्रवर्ती, प्रोनोबेस करमाकर, कुलदीप सिंह, आनन्द आदि शामिल रहे।
भाकपा माले समेत विभिन्न जन संगठनों ने मांग की की केंद्र सरकार जोशीमठ के राहत पुनर्वास के कार्य को अपने हाथ में लेने, जोशीमठ में एन टी पी सी द्वारा बनाई जा रही तपोवन विष्णुगाड़ विद्युत परियोजना को तत्काल स्थायी रोक लगाकर कंपनी पर जुर्वाना करने, जोशीमठ के लोगों घर के बदले घर और जमीन के बदले जमीन देने, वहां के समयबद्ध नव निर्माण के लिए एक उच्च स्तरीय आधिकार प्राप्त समिति गठित करने, प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में बन रही सभी विद्युत परियोजनाओं, आल वेदर रोडों और रेल मार्गों की पुनः समीक्षा करने, पंचेश्वर् बांध न बनाये जाने, मध्य हिमालय के सेंसिटिव क्षेत्रों में जनपक्षीय विकास की कार्य योजना बनाये जाने की मांग की है।