अल्मोड़ा/बागेश्वर/चंपावत/पिथौरागढ़

देवभूमि उत्तराखंड में आपसी भाईचारे और सौहार्द की मिसाल है पहाड़ का यह मुस्लिम गांव “खूना”

कुमाऊँनी रीति-रिवाज, बोल-चाल और संस्कृति में रचे-बसे हैं मुस्लिम परिवार, पुरौला की घटना से हैं आहत, सताने लगा डर

हल्द्वानी। उत्तरकाशी जिले के पुरौला में समुदाय विशेष के खिलाफ नफरती माहौल की आग राज्य के दूसरे जिलों और कस्बों तक पहुंचने लगी है। हल्द्वानी में भी समुदाय विशेष के लोगों के खिलाफ माहौल बनाया जाने लगा है। देवभूमि की शांत वादियों में सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द खराब किये जाने की इन कोशिशों से हर कोई स्तब्ध और चिंतित है। सदियों से आपकी भाईचारे और सौहार्द की मिसाल पेश करने वाले चंपावत जिले के लोहाघाट स्थित खूना गांव के मुस्लिम परिवार भी बेहद आहत हैं।
पहाड़ों की गोद में बसा यह मुस्लिम गांव करीब 550 साल पुराना है। यह गांव चंपावत के चंद राजाओं ने बसाया है। इस गांव के आसपास हिन्दू गांव बसे हैं। हिन्दू मुस्लिम एक-दूसरे के सुख दुख में सदियों से साथ निभा रहे हैं। देवभूमि में हिन्दू मुस्लिम सौहार्द और भाईचारे की मिसाल भी हैं। लेकिन पुरौला, गोचर की घटना से इन परिवारों को भी चिंतित किया है।
मुस्लिम परिवार उत्तराखंड में अलग अलग पहाड़ी जिलों में दशकों और सदियों से रहते आ रहे हैं। लेकिन बीते कुछ सालों में परिवारों को लेकर नफरत का माहौल बना है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा जैसे मुस्लिम परिवार साल-दो साल पहले कहीं बाहर से आकर बसे हैं। इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ रहा है। पुरौला की घटना उदाहरण मात्र है। नफरती माहौल के बीच सदियों से रहने वाले मुस्लिम परिवारों में दहशत होने लगी है। ऐसा ही एक गांव चंपावत का खूना है। खूना के लोग मुस्लिम समुदाय के प्रति नफरती माहौल से आहत हैं। खुद भी डरे सहमे हैं।

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चंद राजाओं ने 550 साल पहले मुस्लिम मलिहार परिवारों को इनाम दिया खूना गांव

मलिहारों का पुस्तैनी काम चूड़ियां बनाने का था। आज से करीब 550 साल पहले चंपावत चंद राजाओं का गढ़ था। उनकी रानियों को चूड़ियां पहनने का शौक था। रानियों के इस शौक को पूरा करने के लिए चंद राजाओं ने राजस्थान के जयपुर से 6 मुस्लिम मलिहार परिवारों को चंपावत बुलवाया। रानियों को मलिहारों की बनाई चूड़ियां पसंद आई तो राजा ने एक गांव मलिहार परिवारों को इनाम में दे दिया। इसी गांव का नाम आज नक्शे में खूना है।

कुमाऊँ की संस्कृति में रचे-बसे हैं मुस्लिम परिवार

हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र के बीच बसे इस गांव के मुस्लिम कुमाऊँ की संस्कृति में रचे बसे हैं। ठेठ कुमाऊंनी बोलते हैं। खेती और पशुपालन कर आजीविका चलाते हैं। पहाड़ का रहन-सहन और शैली इनके खून में रच बस गई है। हालांकि, रोजगार की तलाश में इस गांव से भी पलायन हुआ है। शहरों में पयालन कर चुके परिवार गर्मियों में छुट्टियां मनाने गांव आते हैं।

इबादत के लिए बनी है मस्जिद, देवी-देवताओं को भी मानते हैं

गांव में खूबसूरत मस्जिद बनी है, जहां मुस्लिम परिवार इबादत करते हैं। मस्जिद 150 साल पुरानी बताई जाती है। इसकी छत पहाड़ी शैली के बने मकानों की तर्ज पर पत्थर (पाथर) की बनी है।

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गांव की 550 साल पुरानी मस्जिद जर्जर होने के बाद 150 साल पहले नई मस्जिद बनाई गई। गांव के लतीफ हुसैन बताते हैं, उत्तराखंड देवों की भूमि है। गांव के मुस्लिम परिवार सभी देवी देवताओं को मानते हैं। उनका आदर करते हैं।

लतीफ बताते हैं, उनके घर पारंपरिक शैली के बने हैं। घरों की दरवाजे और खिड़कियों की चौखट की नक्कासी में हनुमान जी से लेकर कई देवताओं की आकृतियां बनी हैं। कहते हैं ऊपर वाला एक है। किसी भी नाम से उसे पुकारा जा सकता है।

ये है पुरौला की घटना
बताया जाता है कि 26 जून को एक नाबालिग अपने दो दोस्तों के साथ घूमने जा रही थी। इनमें एक मुस्लिम युवक था, जबकि दूसरा हिन्दू था। कुछ लोगों ने युवकों को पकड़ लिया और नाबालिग को भगाने का आरोप लगाया। पुलिस ने दोनों आरोपी युवकों को गिरफ्तार कर लिया। इस घटना के बाद से पुरौला में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ माहौल बन गया और कुछ लोगों ने मुस्लिम व्यपारियों की दुकानों के बाहर 15 जून तक दुकान खाली करने के चस्पा कर दिए। तभी से मुस्लिम परिवार वहां से पलायन कर रहे हैं। तनाव को देखते हुए वहां धारा 144 लागू की गई। हालांकि अब धारा 144 हटा दी गई है।

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