बरेली- एशियाई और अफ्रीकन हाथियों में शत-प्रतिशत मौत की वजह साबित हो रहे एलीफैंट एंडोथिलियोट्रोपिक हर्पीस वायरस (ईईएचवी) की रोकथाम के लिए आईवीआरआई के वैज्ञानिकों की ओर से शोध लगातार जारी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक इस वायरस की जांच के लिए हाथियों के ब्लड और नेजल फ्लूड यानी सूंड़ के पानी के सैंपल लिए जा रहे थे इसके वजह से हाथियों को काफी परेशानी हो रही थी। इस प्रक्रिया को बदलाव कर लीद से सैंपल लेने शुरू किए गए। वैज्ञानिकों के मुताबिक लीद से लिए सैंपल से वायरस की जांच ज्यादा आसानी और प्रभावी ढंग से हो रही है।
ब्लड और नेजल फ्लूड का सैंपल लेने से परेशान हो रहे थे हाथी
हाथियों की लीद से लिए गए सैंपल रेक्टल फ्लूइड सैंपल कहा जाता है। आईवीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक एवं वन्य प्राणी उद्यान के प्रभारी डॉ. अभिजीत पावड़े ने बताया कि ईईएचवी की पुष्टि के लिए अब तक हाथियों के शरीर से तमाम सैंपल लिए जा रहे थे जिनमें ब्लड सैंपल और सूंड़ में मौजूद पानी यानी नेजल फ्लूड प्रमुख था। इस विधि से सैंपल लेने की वजह से हाथी विचलित हो जाते थे। सैंपल लेने में हाथी परेशान न हों, इसके लिए अब उनकी लीद से सैंपल लेने शुरू किए गए हैं। इस सैंपल से ज्यादा प्रभावी ढंग तरीके से पता चलता है कि हाथी ईईएचवी वायरस का कैरियर है या नहीं। डॉ. पावड़े ने बताया कि फील्ड बायोलॉजिस्ट के साथ वैज्ञानिकों की टीम जंगल में तमाम जगहों से लीद से सैंपल ले रही है। हाथी की पहचान के लिए उनके पैरों के निशान की माप और जंगल में लगे कैमरे की मदद ली जा रही है।
हाथियों को दर्दनाक मौत देता है ईईएचवी वायरस
वैज्ञानिकों के अनुसार एशिया में पाए जाने वाले हाथियों को ईईएचवी टाइप1ए, टाइप 1बी, टाइप 3, टाइप4 व टाइप 5 वायरस सर्वाधिक नुकसान पहुंचाते है।वायरस से प्रभावित वयस्क हाथी के शरीर पर लाल चकत्ते हो जाते हैं। अवयस्क या कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले उम्रदराज हाथी की इस वायरस के वाहक वयस्क हाथियों के संपर्क में आने से दर्दनाक मौत हो जाती है। इस वायरस संक्रमण से मृत्यु की दर शत-प्रतिशत है। इस वायरस की प्रतिरक्षा की तकनीक भी विकसित की जा रही है। जल्द इसकी रोकथाम के लिए टीका बनाने का भी काम शुरू हो सकता है।