देहरादून। पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट पट्टी के मासों गांव निवासी 88 वर्षीय डॉ. यशवन्त सिंह कठोच को पुरातत्व और इतिहास पर प्रमाणिक लेखन के लिए इस बार पद्मश्री दिया गया है। इस उम्र में भी वह लगातार इतिहास की परतों को खंगालने में जुटे हैं।
राजनीति शास्त्रत्त्, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व में एमए और डीफिल की उपाधियां कठोच ने आगरा विवि से ली। राज्य शिक्षा सेवा में प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत होने के बाद वह लगातार कला, संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व पर लगातार लिखते आ रहे हैं। एटकिंसन के हिमालयन गजेटियर का उन्होंने न सिर्फ समीक्षात्मक सम्पादन किया बल्कि इसमें छूटे ऐतिहासिक तथ्यों को भी समाहित किया। मध्य हिमालय का पुरातत्व (1981), उत्तराखण्ड की सैन्य परम्परा (1994), संस्कृति के पद चिन्ह (1996), मध्य हिमालय ग्रन्थ माला का प्रथम खण्ड। प्राचीन तथा मध्यकालीन भारतीय नगर कोष, मध्य हिमालय खण्ड 2 और 3, सिंह के श्रेष्ठ निबन्ध (सम्पादन), उत्तराखंड का नवीन इतिहास, गढ़वाल के प्रमुख अभिलेख जैसी कृतियों के जरिये इतिहास को पिरोने का कार्य किया। हिमालयी इतिहास एवं पुरातत्व में मौलिक योगदान के लिए 1995 में यूपी के तत्कालीन राज्यपाल ने उन्होंने सम्मानित भी किया। उन्होंने इतिहास और पुरातत्व पर नवीनतम शोधों का समावेश और तथ्यों की प्रमाणिकता पर पुस्तकें लिखी हैं। डॉ. कठोच को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में बतौर इतिहास के विशेषज्ञ और जानकार के रूप में सेवाएं देते आए हैं।
पौड़ी के डॉ. यशवन्त सिंह कठोच को पुरातत्व और इतिहास पर प्रमाणिक लेखन के लिए मिला पद्मश्री
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