राज्य के 4500 से अधिक जलस्रोत सूखे, 1200 जल स्रोत सूखने की कगार पर
काशीपुर। गर्मी का मौसम आने से पहले ही प्रदेश में बिजली पानी के संकट की दस्तक सुनाई देने लगी है। राज्य में अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त बिजली की उपलब्धता नहीं है जिसके कारण बिजली की कटौती अभी से शुरु हो चुकी है। सरकार द्वारा बिजली संकट से निपटने के लिए तीनों ऊर्जा निगमों में जहां कर्मचारियों की हड़ताल पर रोक लगा दी गई है।
वहीं ऊर्जा विभाग के अधिकारी इस संकट के समाधान का रास्ता ढूंढने में जुट चुके हैं। राज्य में इस समय 40 से 42 मिलियन यूनिट बिजली की दरकार है लेकिन राज्य के पास केंद्र सरकार से मिलने वाली 300 मेगा वाट बिजली सहित केवल 27-28 मिलियन यूनिट बिजली उपलब्ध है। खास बात यह है कि बिजली की खपत में गर्मी बढ़ने के साथ साथ हर रोज बढ़ोतरी हो रही है अभी हर रोज 11-12 मिलियन यूनिट बिजली की कमी है जिसमें 5-6 मिलियन यूनिट बिजली का बंदोबस्त किसी तरह ऊर्जा निगम द्वारा कर लिया गया है लेकिन 5-6 मिलियन यूनिट बिजली कम होने के कारण या तो कटौती की जा रही है या फिर उसे खरीद कर पूरा किया जाता है। जिस पर सरकार का 4 से 5 करोड़ रुपए प्रतिदिन खर्च किया जा रहा है।
राज्य को केंद्र सरकार से जो 300 मेगा वाट सस्ती बिजली 28 फरवरी तक मिलती रही है वह अब आगे मिलती रहेगी या नहीं इस पर भी अभी केंद्र सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है अगर केंद्र से मिलने वाली बिजली जारी नहीं रहती है तो यह बिजली संकट और भी अधिक गंभीर रूप ले लेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। प्रदेश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस साल उत्तराखंड के लोगों को अभूतपूर्व बिजली संकट का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। एक खास बात यह है कि बिजली संकट का सीधा प्रभाव पेयजल व्यवस्था पर भी पड़ता है। बिजली आपूर्ति ठप होने से पेयजल आपूर्ति भी ठप हो जाती है जिसका शहरी क्षेत्रों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है लेकिन इस साल सूबे में जनवरी फरवरी माह में होने वाली बारिश भी अन्य सालों की तुलना में 62 प्रतिशत कम हुई है जिसके कारण जल स्रोतों का अभी से सूखना शुरू हो गया है। बीते 10 सालों से यूं तो राज्य के प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने का सिलसिला लगातार जारी है और राज्य के साढे चार हजार से अधिक जलस्रोत सूख चुके हैं तथा 1200 जल स्रोत सूखने की कगार पर है। मौसम के बदलाव या ग्लोबल वार्मिंग का असर भी बिजली-पानी की उपलब्धता पर पड़ रहा है। फरवरी माह में ही मई माह जैसी गर्मी के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं राज्य की नदियों का जलस्तर अभी से कम हो रहा है जिसका प्रभाव आने वाले दिनों में बिजली उत्पादन और पेयजल दोनों पर पड़ना तय है।
मौसम और वर्तमान हालात से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं वह साफ संकेत दे रहे हैं कि इस साल की गर्मी के सीजन में राज्य के लोगों को बिजली पानी के घोर संकट से जूझना पड़ेगा। हालांकि शासन-प्रशासन के स्तर पर अभी से इस संकट से निपटने की तैयारी शुरू की जा चुकी है लेकिन वह इस चुनौती से कितना निपट पाएगा यह आने वाला समय ही बताएगा।