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अल्मोड़ा/बागेश्वर/चंपावत/पिथौरागढ़

बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन कर चमुवा के प्रगतिशील किसान हुकुम सिंह कार्की ने दिखायी काश्तकारों को राह

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पहाड़ों में बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन की ओर बड़ते कदम

चमुवा खालसा (अल्मोड़ा)। पहाड़ों में किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए बेमौसमी सब्जियां काफी मददगार साबित हो सकती हैं। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की अगर हम बात करें, तो यहां ज्यादातर सब्जियां मैदानी जिलों से आती हैं। हालांकि इनमें कई सब्जियां ऐसी हैं, जिनका उत्पादन ठंड के कारण जिले में नहीं हो पाता है और सर्दियों के समय इन सब्जियों की मांग ज्यादा होने के कारण इसके दाम भी बाजार में अधिक रहते हैं, तो आज हम आपको बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन में होने वाले मुनाफे के बारे में बता रहे हैं। इससे पहाड़ी इलाकों के किसान अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं।

जिला मुख्यालय से पैंतालीस किमी दूर, भगरतोला व चमुवां के काश्तकार विगत 15-16 वर्षों से बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। जिससे किसानों की आमदनी भी बड़ रही है। चमुवा खालसा के प्रगतिशील किसान हुकम सिंह कार्की पिछले छ:वर्षो से बेमौसमी टमाटर, लाल सब्जी मूली ,फूल गोभी ,पत्ता गोभी, शिमला मिर्च, खीरा आदि सब्जियो का उत्पादन कर रहे हैं। जो पूर्ण रूप से जैविक उत्पाद हैं। वे कहते हैं कि बीते वर्षो की तुलना में इस बार टमाटर का उत्पादन कम है, जिसके कारण किसानों का टमाटर 70-80 रूपये प्रति किग्रा मंडी में जा रहा है।

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छ: वर्ष पहले सितारगंज में किसी कंपनी में एचआर के पद पर काम करने वाले हुकुम सिंह कार्की कहते हैं कि पहाड़ में ही रोजगार सृजन का ये छोटा सा प्रयास है। अगर सरकार इस तरफ ध्यान दे, तो पहाड़ से पलायन रोकने में भी ये कदम कारगर साबित हो सकते हैं। अब चमुवां खालसा गांव में अन्य परिवारों ने भी सब्जी उत्पादन का कार्य शुरू किया है। जिसमें ग्रामीण टमाटर, खीरा ,फूल गोभी, पत्ता गोभी, मटर, विनस्, मूली और मसालो में लहसून, अदरक, हल्दी, आदि मौसमी और बेमौसमी सब्जियों उत्पादन कर रहे हैं।

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कार्की कहते हैं,पिछले कुछ वर्षो से पत्तागोभी का प्रचलन काफी बड़ रहा है, जिसका उपयोग चाउमीन आदि में किया जाता है। ग्रामीण पत्तागोभी का उत्पादन खूब कर रहे हैं, पर मार्केट भाव के चलते किसानों की मेहनत के अनुसार आमदनी नही हो पाती है। वर्तमान मे पत्ता गोभी का बाजार भाव 1400-15000रु० प्रति कुन्तल है, जो कि लेबर और ट्रांसपोर्ट मे ही खर्च हो जाता है।

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संपादक: गुलाब सिंह
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