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श्रद्धालुओं ने सुनी राम सुग्रीव मित्रता, सुंदरकांड एवं रावण वध की कथा

शिव मंदिर समिति सेक्टर 1 द्वारा श्री राम कथा के नवम दिवस की कथा का आयोजन
हरिद्वार।  शिव मंदिर समिति सेक्टर 1 द्वारा आयोजित श्री राम कथा के नवम दिवस की कथा मे कथा व्यास पंडित माधव शरण शास्त्री जी ने राम सुग्रीव मित्रता, सुंदरकांड एवं रावण वध की कथा सुनाई।


कथा विस्तार करते हुए  कहा कहा की बाली और सुग्रीव दोनों सगे भाई थे लेकिन संयोग वश दोनों में बड़ी शत्रुता हो गई थी। जब एक दिन एक राक्षस को मारने के लिए बाली उस के पीछे गुफा में गया और काफी दिन तक बाहर नहीं आया तो तत्पश्चात बाहर रक्त की धारा को देख सुग्रीव ने सोचा कि मेरे भाई बाली का वध हो गया है और वह गुफा के मुख्य द्वार पर बड़ा सा पत्थर रख कर अपने राज्य जा कर राजपाठ संभालने लगा।लेकिन बाली जीवित था वो रक्त की धारा उस राक्षस की थी जिसका वध बाली ने किया था।बाली ने वापस आकर सुग्रीव को भला बुरा कहा ओर उसको मार भगाया।ओर सुग्रीव की पत्नी को अपने पास रख लिया।कुछ समय बाद सुग्रीव की मित्रता हनुमान से हुई।
हनुमान जी ने सुग्रीव की भेंट राम व लक्ष्मण से करायी।सुग्रीव ने अपने ऊपर हुए अन्याय को राम के समक्ष रखा।राम को ये बात अच्छी नहीं लगी की कोई दुष्ट  छोटे भाई की पत्नी, उसकी संपत्ति और कन्या आदि को अपने पास रख धर्म विरुद्ध कार्य करें। कथा व्यास जी ने कथा को आगे बढ़ाते हुए बाली वध की व्याख्या की। सीता की खोज करते हुए हनुमान जी रात्रि मे लंका में प्रवेश करते हैं  दिन में क्यों नहीं क्योकि रात्रि में ही राक्षसी प्रवृत्ति का पता चलता है अतः इसलिए भगवान राम के भगत विभीषण का पता रात्रि में ही चला। कि विभीषण जी राम भगत है। तब विभीषण ने माता सीता का पता हनुमान को बताया की माता सीता अशोक वाटिका में रावण द्वारा रखी गई है।
हनुमान जी ने अशोक वाटिका में माता सीता से मिलकर अजर अमर रहने का वरदान प्राप्त किया। जब हनुमान लंका को जला कर माता सीता की पता लगा  अंगूठी लेकर सही राम के पास पहुचे तब् हनुमान जी ने श्री राम से दोगुना आशीर्वाद प्राप्त कर राम सीता के प्रिय हो गये। कथा कहती है कि हनुमान ही राम कथा के वक्ता और श्रोता दोनो ही है।राम कथा केवल धरा धाम पर हनुमान की आज्ञा से ही आयोजित हुआ करती है।कथा व्यास महाराज जी   ने मेघनाथ,कुम्भकरण,अहिरावण और रावण के अनेको सूरवीर योद्धाओ कि कथा बड़े ही विस्तार के साथ सुनाई और अंत में राम रावण का युद्ध का वर्णन करते हुए कहते है कि जब विभीषण ने श्री राम से पूछा कि आप के पास लड़ने के लिए रथ नहीं है,सेना नहीं है,बड़ी बड़ी तलवार नहीं है तो हे राम तुम रावण को कैसे जीत सकते हो तब भगवान राम ने उत्तर दिया कि हे विभीषण जो मेरे पास है वो लंका पति रावण के पास नहीं है।
मेरे पास क्षमा,दया,आशीर्वाद,विनयशीलता,प्रेम ममता,अहंकार विहीन,ध्यान साधना और सबसे बड़ा मेरा भाई मेरे साथ है।हे विभीषण  रावण के पास अहंकार के अलावा कुछ भी नहीं है आता है अतः युद्ध जीतने के लिए इन सभी की आवश्यकता होती है जो मेरे पास है अंततः जीत सिर्फ मेरी ही होगी अर्थात् धर्म  की होगी।और अंत मे श्री राम ने रावण को परलोक भेज बुराई पर अच्छाई कि जीत का परिचय दिया।
कथा के मुख्य यजमान तेज प्रकाश, रेनू,बृजेश शर्मा,आदित्य गहलोत, राकेश मालवीय,जयप्रकाश,होशियार,विष्णु,अनिल चौहान,दिलीप गुप्ता,विजय,विभा गौतम,सुमन,कुसुम,अलका,भावना,
पुष्पा,राज किशोरी मिश्रा, मानदाता,चंद्रभान,डोली,अर्चना, कौशल्या, रामकुमार, महेश,अनपूर्णा,अंजू,संतोष,दीपिका, सलोनी,ऋषि, सरला,रजनीश पाल, रेनू शर्मा आदि लोग उपस्थित रहे ।

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