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हरिद्वार

प्रवासी पक्षियों के वैटलैंड भूमि के अस्तित्व पर संकट

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(विश्व वेटलैंड दिवस: 2 फरवरी) कहीं अतिक्रमण से वैटलैंड भूमि खत्म हुई तो कहीं बन गए कूड़ाघर
हरिद्वार।
बृहस्पतिवार को विश्व वैटलैंड दिवस है। हरिद्वार में वैटलैंड भूमि‌ धीरे-धीरे कम हो रही है। वैटलैंड भूमि पर कहीं कूड़ाघर बन गए हैं तो कहीं कब्जे हो गए हैं। भीमगोड़ा, झिलमिल झील और गंगा किनारे के वेटलैंड ही प्रवासी पक्षियों के ठिकाने बने हैं। झिलमिल झील पक्षियों के साथ-साथ हिरण की प्रजातियों के लिए विशिष्ट आवास हैं।
हरिद्वार के।वेटलैंड पर करीब 20 से 30 प्रजाति के प्रवासी पक्षी विश्व के अलग-अलग जगहों से प्रवास करने आते हैं। पक्षी विशेषज्ञ आशीष कुमार आर्य बताते हैं वैटलैंड की मिट्टी झील, नदी, तालाब या नमीयुक्त किनारे का हिस्सा होती है। भूमिगत जल स्तर बढ़ाने, बाढ़ नियंत्रण और जल प्रदूषण कम करने में वैटलैंड महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
वैटलैंड में ही जैव विविधता संरक्षण होता है। आशीष आर्या के मुताबिक पक्षी सर्वेक्षण के दौरान अलग-अलग आदर भूमि के सर्वेक्षण किया गया। अधिकांश दलदली जमीन और पोखरों में अतिक्रमण हो गया है। दलदली जमीन मलबा डालकर पाट दी है या फिर कूड़ाघर में बदल गई है। गोविंदपुरी से गंगा नहर से सटी दलदली जमीन उदाहरण है। आशीष बताते हैं, वैटलैंड खत्म हो रही है, जिससे प्रवासी पक्षी भी कम हो गए हैं। हरिद्वार में अब गंगा किनारे और झिलमिल झील में ही प्रवासी पक्षी दिखते हैं।

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संपादक: गुलाब सिंह
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