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नई दिल्ली

इसी कलम से कभी लिखा था…

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जब भी लिखेगी कुछ खास लिखेगी,
कभी न दिलों की खटास लिखेगी,
प्रेम की स्याही में शीश डुबाकर,
एकता की ही मिठास लिखेगी।
हर्ष लिखेगी उल्लास लिखेगी,
न व्यर्थ का भोग-विलास लिखेगी,
लेखनी जब भी हमारी उठेगी तो,
राष्ट्र का स्वर्णिम विकास लिखेगी।

और लिखा…

ऐसे कुछ नये विचार बनाओ,
जीवन का आधार बनाओ,
द्वेष-कलह का नाश करें जो,
कलम को वह हथियार बनाओ।

यही कलम आज कोरोना काल में लिख रही है….

भय से घरों में क़ैद हो लाचार जैसी हो गई,
मेज पर बासी पड़े अखबार जैसी हो गई,
आपाधापी बन्द है सब,काम सारे मन्द हैं,
ज़िन्दगी ऐसे अजब इतवार जैसी हो गई।

और यही कलम लिखती है…

गायब सी हो रही है बाज़ार की खुशी,
लाएं कहाँ से बोलो परिवार की खुशी,
इंतज़ार जिसका होता था हमें अक्सर,
ली छीन बंदिशों ने उस इतवार की खुशी।

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कोरोना के भय से वही कलम लोगों को जागरूक रहते हुए सावधानी बरतने का संदेश देते हुए लिखती हैं….

कोरोना है बन रहा मानव जीवन का काल,
सब जन इससे त्रस्त हो हुए आज बेहाल।
यदि इससे बचना हमें तो देना होगा ध्यान,
अफवाहों को तनिक भी नहीं सुनेंगे कान।
कोरोना से जंग की याद रखें सब टास्क,
हाथों में दस्ताने पहनें और चेहरे पर मास्क।
ध्यान रहे सेनेटाइजर का हमें सदा उपयोग,
अपनाएं सब स्वच्छता नहीं लगे यह रोग।
बीस सेकेण्ड तक हाथ को धोकर करिए साफ,
वरना हमको यह वायरस नहीं करेगा माफ।
आरोग्य सेतु,आयुष कवच हो मोबाईल में ऐप,
हो कितना प्यारा कोई रखें सदा ही गैप।
करें नमस्ते दूर से नहीं मिलायें हाथ,
चिपक कभी न बैठिये कहीं किसी के साथ,
व्यर्थ कहीं भी घूमना कर दीजै अब बन्द,
नियमों का पालन करें और रहें सानन्द।
सावधान रहते हुए ले मन में नई उमंग,
जीत जायेगी ज़िन्दगी फिर कोरोना से जंग।

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जिस कलम ने प्रेम भाईचारा एकता की बात लिखी वह आज लिखने को मजबूर है….

कभी आधी-अधूरी लिख डाली,
कभी लिखी तो पूरी लिख डाली,
लेखक के मन को भाया तो,
हर बात फितूरी लिख डाली,
सुबह कभी प्यारी लिख दी,
कभी शाम सिन्दूरी लिख डाली,
प्रियतमा की आंखें झील कभी,
कभी काली-भूरी लिख डाली,
लिख दिया प्रेम-भाईचारा
कभी श्रद्धा-सबूरी लिख डाली,
जुड़ सकें तार दिल से दिल के,
हर बात जरूरी लिख डाली,
है वही कलम मजबूर हुई,
अपनी मजबूरी लिख डाली,
एक वायरस के कारण,
अपनों से दूरी लिख डाली।

देवेश द्विवेदी ‘देवेश’

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संपादक: गुलाब सिंह
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