नई दिल्ली
बूढ़े बरगद की छाया
दिल में सूनापन रहता है
तन खण्डहर सा लगता है,
देख के सन्नाटा जीवन का
अक्सर डर सा लगता है,
भले बना लो कोठी-बंगले
लेकिन ये सच्चाई है,
बूढ़े बरगद की छाया हो
तो घर,घर सा लगता है।
देवेश द्विवेदी ‘देवेश’
