जिसका धोखा उसी पर डाल,
फिर प्रभु का तू देख कमाल।
गर तू चूहे का पेट भरेगा,
बता फिर वो कैसे तड़पेगा।
क्यों तू उसके बिल में जायेगा,
चूहे को तू बिल से निकाल ।
फिर प्रभु का तू देख कमाल।
गर तू दूजे का बोझ ढोएगा,
फिर अपनों को तू खोयेगा ।
तू तो वैसे भी है मालामाल,
तेरा परिवार है तेरी ही ढाल।
अब अपने तू पाशे निकाल,
फिर प्रभु का तू देख कमाल।
हिम्मत कर डर को भगा,
तेरी राह देखे तेरा आशियाँ।
तूने सबका ही पेट भरा,
फिर भी सबने तुझको है डसा।
अपने अन्दर का क्रोध निकाल,
फिर प्रभु का तू देख कमाल।
होती सबकी अपनी एक जगह,
क्यों तू सबके कहे में चला।
आत्मा की आवाज जगा दे,
सबको अपना जलवा दिखा दे।
बरसा,अन्दर जो जल रही ज्वाल,
फिर प्रभु का तू देख कमाल ।
जिसने जज्बातों से है खेला,
अंधियारे में जिसने तुझे धकेला।
अपना पहला वार तू कर दे,
उसका भंडार भरने से रोक दे।
भीख मांगे वो कर ऐसा वार ,
फिर प्रभु का तू देख कमाल ।
साँप के लिये दया मत रख,
बिल्कुल कर दे खुद से अलग।
वो अपनी फितरत न छोड़ेगा,
बाद में वो फिर तुझको ही डसेगा।
तेरी हिम्मत है तेरी ललकार,
मन से उसे तू अब दे निकाल ।
फिर प्रभु का तू देख कमाल।
” तेरी हिम्मत के चर्चे, होते हैं आसमानों में।
क्यों तू खो रहा है खुद को,आकर इस जमाने में ।
छुपी हुई है तेरे अन्दर जो, प्रभु की दी हुई मशाल।
रख भरोसा खुद पर,दुश्मन के सीने में दे उसे डाल।
डॉ. कल्पना कुशवाहा ‘ सुभाषिनी ‘