नैनीताल

कालीचौड़ मंदिर और सुल्ताना डाकू

दीपक नौगाई

काठगोदाम/हल्द्वानी- कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी से दस किलोमीटर दूर और काठगोदाम से छह किमी दूर घने जंगल में स्थित है – काली माता का मंदिर, जिसे ‘ कालीचौड़ ‘ नाम से जाना जाता है । काठगोदाम से चोरगलिया – सितारगंज को जाने वाली रोड मे सुल्ताननगरी नामक स्थान से पैदल अथवा निजी वाहन से कच्ची उबड़-खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए आप मंदिर तक पहुंचते हैं ।


पौराणिक काल से अनेक कथाओं को समेटे यह स्थान ॠषि मुनियों की अराधना के पश्चात लंबे समय तक गोपनीय रहा । कहते हैं वर्ष 1942 के आसपास कोलकाता में एक बंगाली भक्त को माॅ कालिका ने सपने में दर्शन दिए तथा इस जगह पर अपनी आलौकिक शक्ति होने का भान कराया ।


दिव्य शक्ति से अभिभूत उस काली भक्त ने इस जगह की खोज करने की ठानी । हल्द्वानी पहुंचकर उन्होंने यह बात रामकुमार चूड़ी वालों को बताया । दोनों लोग गौलापार पहुँच कर गांव वालों के साथ मिलकर इस स्थान को खोजने लगे । कई दिनों की खोज के बाद उन्हे घने जंगल में पेड़ के नीचे काली माँ की मूर्ति व शिवलिंग दिखाई दी । आसपास कई खंडित मूर्तियां भी मिली । खुदाई करने पर एक ताम्रपत्र भी मिला, जिसमें पाली भाषा में काली के महात्म्य का उल्लेख किया गया था ।
यह स्थान सुल्ताना डाकू की शरण स्थली भी रही है । माना जाता है कि वो काली माता का भक्त था । आजादी से पूर्व जब यात्राएं पैदल ही हुआ करती थी और अंग्रेज जब पैदल नैनीताल जाया करते थे, तब सुल्ताना इन्हे घेर कर लूट लिया करता था । लूटने के बाद वह अपने साथियों के साथ इन जंगलों में छिप जाया करता। यही से वह जंगल के रास्ते नैनीताल जाया करता था । नैनीताल में राजभवन के पास जंगल में सुल्तान की गुफा आज भी मौजूद है ।
ऐसा माना जाता है कि बाबा गुरु गोरखनाथ ने इसी जगह को अपनी अराधना व तपस्या का केन्द्र बनाया । उन्होंने यहाँ धूनी जमाकर मां काली की कठोर साधना की । काली की कृपा से ही उन्हे यहाँ के महान प्रतापी हरु, सैम , गोल्जयू के देवता होने का भान हुआ । चंपावत मे जल रही गुरु गोरखनाथ की अखंड धूनी काली की गोरखनाथ पर हुई कृपा का ही प्रताप मानी जाती हैं । (कहानी भी जारी है कल के लिये)

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