सिसकती इन हवाओं में, है पूछता मठ जोशी
दरकते इन पहाड़ों का, बताओ कौन है दोषी।
विकास के नाम पर हमनें, कईं जुर्म कर डाले
कहीं भागीरथी कहीं काली, बांधी कहीं कोशी।
दरकते इन पहाड़ों का, बताओ कौन है दोषी।
छील छील पहाड़ तुमने, होटल रेस्त्रां बना डाले
भूमि वो जप तप की, अय्याशी क्यों वहां होती।
दरकते इन पहाड़ों का, बताओ कौन है दोषी।
टूटे पहाड़ जितना, मुनाफा उनका उतना है
पहाड़ प्रेमी बताते खुद को, फिरते ऐसे उद्घोषी।
दरकते इन पहाड़ों का, बताओ कौन है दोषी।
फोड़े जा रहे बम थे, “राजू” छाती पहाड़ों के
मुनाफाखोर तब जो थे, बने हैं आज वो रोषी।
दरकते इन पहाड़ों का, बताओ कौन है दोषी।
– राजू पाण्डेय
ग्राम – पो. बगोटी (चम्पावत)
यमुनाविहार, दिल्ली