धर्म-कर्म/मेले-पर्व

प्रकृति को आभार प्रकट करने वाला लोकपर्व है ‘फूलदेई’

हल्द्वानी के गोविंदपुर गरवाल ग्रामसभा में अध्यापक लाल सिंह वाणी के प्रयासों से बच्चों ने पहली बार मनाई फूलदेई

अल्मोड़ा/हल्द्वानी। आज फूलदेई है। चैत के महीने की संक्रांति को जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है। सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं और पहाड़ बुरांश के लाल फूल खिलने लगते हैं तो खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार आमतौर पर किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है।
सामाजिक कार्यकर्ता भुवन जोशी का कहना है कि फूल और चावलों को गांव के घर की देहरी, यानी मुख्यद्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआ मांगती हैं। इस दौरान एक गाना भी गाया जाता है- फूलदेई, छम्मा देई…जतुकै देला, उतुकै सही…दैणी द्वार, भर भकार
फूलदेई के दिन लड़कियां और बच्चे सुबह-सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं। इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं। इन फूलों और चावलों को गांव के घर की देहरी, यानी मुख्यद्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआ मांगती हैं।

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वहीं, हल्द्वानी के गोविंदपुर गढ़वाल ग्राम सभा में अध्यापक श्री लाल सिंह वाणी के प्रयासों से बच्चों द्वारा पहली बार फूलदेई  मनाई गई । बच्चों ने हर्षोल्लास के साथ घर -घर जाकर  घरों की देहली में फूल डाले तथा फूलदेई छम्मा देई के गाने गाये। लोगों ने बच्चों का चावल  और मिठाई से  स्वागत किया। सार्वजनिक रूप से गांव में पहली बार फूलदेई मनाए जाने से बच्चों में काफी ज्यादा उत्साह देखने को मिला।  अध्यापक वाणी के प्रयासों की स्थानीय लोगों ने खूब सराहना की। फूलदेई त्यौहार को सफल बनाने में श्री शंभू दत्त कांडपाल, नरेंद्र सिंह, जगदीश कांडपाल, लाल सिंह जलाल, बीना कांडपाल, केडी बेलवाल, डीएस राठौर, मदन मोहन बिष्ट, देव सिंह बिष्ट, डीएस कुंजवाल शेर सिंह बिष्ट आदि स्थानीय लोगों ने बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया।

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