होली खेलन आए बरसाने में नंदलाल। संग लिए ब्रज के हुरियारे और लिए ग्वाल बाल।। बृषभानु की छोरी राधिका, तन मन से वह कृष्ण साधिका। देख कृष्ण को शर्म से हो गई लाल, होली खेलन आए बरसाने में नंदलाल। हरे बांस की ले पिचकारी, टेसू के रंग में भरी सारी। दी राधे पर डाल, होली खेलन आए बरसाने में नंदलाल। होली खेलत हैं राधे कृष्णा, रूप सलौना ना जाए वर्णा। उड़ रयो रंग गुलाल, होली खेलन आए बरसाने में नंदलाल। प्रेम रंग बरसाने में छाया, गोपियों ने उल्लास मनाया। निरख श्याम को नैना हुए निहाल, होली खेलन आए बरसाने में नंदलाल। स्वरचित रचना, डाॅ० सुधा सिरोही, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश