नव कोपले हैं खिल उठी,
कोयल ने छेड़ा राग है।
नव कान्ति से शोभित हुआ,
हर खेत और हर बाग है।
अलसी के नीले फूलों से,
सज गई हैं धरती मां।
सरसों के पीले फूलों ने,
शोभित किया सारा जहां।
हैं दृष्टिगोचर हर तरफ,
गेहूं की सुन्दर बालियां।
तितलियों-भंवरों से सजी,
वृक्षों की हर एक डालियां।
मदमस्त है अब हर कोई,
उल्लास की बयार से।
धरती करे अठखेलियां,
मधुमास की फुहार से।
‘देवेश’ इस आनन्द का,
अब नहीं कोई अन्त है।
सब हर्ष से स्वागत करें,
आ गया वसन्त है।
- देवेश द्विवेदी ‘देवेश’
लखनऊ