हरिद्वार। तपोनिधि श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के अंतरराष्ट्रीय संत एवं शिवोपासना संस्थान डरबन साऊथ अफ्रीका के संस्थापक स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा कि गायत्री जन्मोत्सव 31 मई 2023, दिन बुधवार, ज्येष्ठ एकादशी मनाई जायेगी। गायत्री जयंती पूजन का मुहूर्त 30 मई 2023 को 01:07 से 31 भी को दोपहर 01:45 बजे तक रहेगा। उन्होंने कहा कि
गायत्री जन्मोत्सव वेदमाता माता गायत्री के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाई जाने वाली एक पौराणिक परंपरा है। ज्येष्ठ माह की एकादशी का दिन माता गायत्री के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म कैलेंडर के अनुसार साल 2023 में गायत्री जन्मोत्सव 31 मई को मनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के फैलाव और मत भिन्नता के कारण भारत देश के दक्षिणी हिस्से में गायत्री जयंती श्रावण पूर्णिमा के दिन भी मनायी जाती है। साल 2023 में श्रावण पूर्णिमा गायत्री जयंती 31 अगस्त को मनायी जाएगी। श्रावण पूर्णिमा, गायत्री जयंती को संस्कृत दिवस के रूप में मनाई जाती है। स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा कि वेद माता गायत्री को त्रिमूर्ति देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की देवी माना जाता है। सभी वेदों की देवी होने के कारण गायत्री को वेद माता के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें समस्त सात्विक गुणों का प्रतिरूप माना गया है और ब्रह्मांड में मौजूद समस्त सद्गगुण माता गायत्री की ही देन है। माता गायत्री को देवताओं की माता और देवी सरस्वती, पार्वती और लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।
स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा कि पौराणिक मान्याताओं के अनुसार महाशक्ति माता गायत्री का विवाह ब्रह्माजी से हुआ माना जाता है। हिंदू वैदिक साहित्य और पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी की दो पत्नी हैं, एक गायत्री और दूसरी सावित्री। प्रजापति ब्रह्मा की अर्धांगिनी होने के नाते दुनिया में निरंतरता बनाए रखने के लिए माता गायत्री चेतन जगत में कार्य करतीं हैं। वहीं माता सावित्री भौतिक जगत के संचालन में मदद करती है। इसे ऐसे समझे जब हम किसी तरह के आविष्कार या नयी उत्पत्ति से संबंधित खोज करते हैं तो वह मां सावित्री की अनुकंपा से प्राप्त होता है। वहीं माता गायत्री प्राणियों के भीतर विभिन्न प्रकार की शक्तियों के रूप में प्रवाहित होती हैं, वे किसी प्रकार की प्रतिभा, विशेषताओं और ज्ञान के रूप में हो सकती हैं। जो व्यक्ति माता गायत्री रूपी शक्ति के उपयोग का विधान ठीक तरह जानता है वह जीवन में वैसे ही सुख उठा सकता है जिसकी वह कामना करता है। उन्होंने कहा कि मान्यताओं के अनुसार पहली बार गायत्री मंत्र का आभास परमपिता ब्रह्माजी को हुआ और मां गायत्री की कृपा से उन्होंने अपने प्रत्येक मुख से गायत्री मंत्र (gayatri mantra in hindi) की व्याख्या की। माना जाता है कि हिंदू धर्म की नींव कहे जाने वाले चारों वेद इसी गायत्री मंत्र की व्याख्या है जो परमपिता ब्रह्मा ने की थी। माना जाता है कि गायत्री मंत्र पहले सिर्फ देवताओं तक ही सीमित था लेकिन जिस प्रकार भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाकर लोगों के तन और मन को पवित्र करने का कार्य किया वैसे ही ऋषि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को आम लोगों तक पहुंचाकर लोगों की आत्मा को शुद्ध करने का कार्य किया। माना जाता है कि गायत्री माता सूर्य मंडल में निवास करतीं हैं। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य से संबंधित कोई भी दोष हो, वे गायत्री मंत्र का जाप कर सकते हैं। स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा कि
किसी भी मंत्र की तरह गायत्री मंत्र भी अपनी ध्वन्यात्मकता के माध्यम से आपके शरीर, मन और आत्मा को पवित्र करता है। गायत्री मंत्र के 24 अक्षर साधकों की 24 शक्तियों को जाग्रत करने का कार्य करते हैं। इस मंत्र के शब्दों के साथ विभिन्न प्रकार की सफलताएं, सिद्धियां और सम्पन्नता जैसे गुण जुड़े हैं। आइए गायत्री मंत्र का अर्थ शब्दशः समझने का प्रयास करें।
गायत्री मंत्र – ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
गायत्री मंत्र का हिंदी में अर्थ – उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें
माता गायत्री की उपासना कभी भी और किसी भी स्थिति में की जा सकती है। मां गायत्री की पूजा को हर स्थिति में लाभदायी माना जाता है, लेकिन विधिपूर्वक, निःस्वार्थ और भावनाओं के कम से कम कर्मकाण्डों के साथ की गयी गायत्री पूजा को अति लाभदायी माना गया है। सुबह अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर किसी निश्चित स्थन और निश्चित समय पर सुखासन की स्थिति में बैठकर नियमित रूप से मां गायत्री की उपासना की जानी चाहिए। इसी के साथ कम से कम तीन मात्रा गायत्री मंत्र का जप भी करना चाहिए।
ज्येष्ठ एकादशी को गायत्री जन्मोत्सव मनाने की पौराणिक परंपरा, 31 मई को मनाया जाएगा गायत्री जन्मोत्सव: स्वामी रामभजन वन
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