हरिद्वार
सबरंग काव्य गोष्ठी में काव्य रस की धारा बही
हरिद्वार। ऋतुराज बसंत के आगमन के साथ ही नगर में साहित्यिक गतिविधियों में तेजी आ गई है। विभिन्न संस्थाओं के साथ-साथ व्यक्तिगत काव्य गोष्ठियों का आयोजन हो रहा है। इसी क्रम में, पारिजात साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष, गीतकार एवं कवि सुभाष मलिक के आवास पर एक सबरंग काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं पुष्प अर्पण के साथ हुआ। कवियित्री कंचन प्रभा गौतम ने अपनी वाणी वंदना ‘मेरे कंठ में जो भी स्वर है, वो तेरा ही है वरदान’ प्रस्तुत की। वरिष्ठ कवि गिरीश त्यागी की अध्यक्षता एवं परिक्रमा साहित्यिक मंच के संरक्षक मदन सिंह यादव के संचालन में काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ।
कवि अरुण कुमार पाठक ने ‘आओ देखें माँ गंगा क्या कहती है, गोमुख से गंगासागर क्यों बहती है’ के माध्यम से माँ गंगा की व्यथा को श्रोताओं के समक्ष रखा। सुभाष मलिक ने ‘मैं परंपरा का दास नहीं, रूढ़ी में मेरा विश्वास नहीं’ कहकर समाज में व्याप्त रूढ़ियों पर कटाक्ष किया। गिरीश त्यागी ने ‘जीवन को जीना होता है, चाहें जितना भी दुख आये’, डॉ. शिव शंकर जायसवाल ने ‘इम्तिहान कोई भी अंतिम नहीं होता’ और शशिरंजन समदर्शी ने ‘कुदरत का प्रभु संसार समझना दूभर है’ जैसे प्रेरक विचारों से श्रोताओं को अवगत कराया।
साधुराम पल्लव ने ‘रीढ़ पीठ को छोड़ चुकी है, कैसे बोझ उठाऊँ’ के माध्यम से जन समस्याओं को उजागर किया। डॉ. मीरा भारद्वाज ने ‘धरती कर रही है सिंगार, सखी कंत पधारे हैं’, मदन सिंह यादव ने ‘खुशियां छाई हैं दिग्दिगंत आया मनभावन बसंत’ और कुंअर पाल सिंह ‘धवल’ ने ‘उनकू बसंत जिनके तन पर बसंत सखी’ के साथ ऋतुराज का स्वागत किया।
कंचन प्रभा गौतम ने ‘मेरे देश की मिट्टी चंदन है, नि-नित करती वंदन मैं’ और युवा कवि अरविन्द दुबे ने ‘आओ देखें भारत माता से कितनों को प्यार हुआ है’ के साथ देश को नमन किया। राजकुमारी राजेश्वरी ने ‘प्राण निछावर करने वाले याद हमें मुश्किल ही आते’ सुनाकर देश के शहीदों को याद किया। डॉ. सुशील कुमार त्यागी ‘अमित’ ने गीत ‘खोजती है नज़र सोचता है, जिगर’ और इमरान बदायूँनी ने ग़ज़ल ‘फूल जैसे खिल किसी दिन धूप जैसे उतर’ प्रस्तुत कर खूब तालियाँ बटोरीं। इस प्रकार, सबरंग काव्य गोष्ठी में विभिन्न रंगों के भावों और विचारों की अभिव्यक्ति हुई और श्रोताओं ने काव्य रस का आनंद लिया।
