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बागेश्वर का कज्युली गांव: जहां लोकतंत्र का असली रूप दिखता है, 63 वर्षों से निर्विरोध चुने जा रहे प्रधान
बागेश्वर। गरुड़ तहसील के कज्युली गांव ने लोकतंत्र की एक ऐसी मिसाल कायम की है, जो आज के समय में दुर्लभ होती जा रही है। आजादी के बाद से अब तक यहां आठ प्रधान निर्विरोध चुने जा चुके हैं। गांव के 97 परिवारों और 300 मतदाताओं ने कभी भी चुनावी लड़ाई या गुटबाजी को जगह नहीं दी। आपसी प्रेम, एकजुटता और सामूहिक निर्णय ही इस गांव की असली ताकत है।
यहां 1962 में पहला पंचायत चुनाव हुआ था और तब से लेकर अब तक हर बार ग्राम प्रधान निर्विरोध ही चुना गया है। अब तक पदम सिंह, धाम सिंह, किशन सिंह, दिग्पाल सिंह, पुष्पा रावत, मुन्नी देवी और इंद्र सिंह भंडारी जैसे लोग ग्राम प्रधान रह चुके हैं। इनमें से कई ने दो से तीन कार्यकाल भी निभाए हैं। खास बात यह है कि अधिकांश प्रधानों का कार्यकाल 10 से 15 वर्षों तक रहा, जो उनकी लोकप्रियता और कार्यशैली का प्रमाण है।
विकास की मिसाल है कज्युली
आज कज्युली गांव मूलभूत सुविधाओं—बिजली, पानी, सड़क, संचार आदि—से पूरी तरह सुसज्जित है। यह सब निर्विरोध नेतृत्व और साझा सोच का परिणाम है। यहां सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ समय पर मिलता है और ग्रामीणों को किसी प्रकार की प्रशासनिक जटिलता का सामना नहीं करना पड़ता। गांव के युवा सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में कार्यरत हैं, जिससे आर्थिक समृद्धि भी बनी हुई है।
गांव का काम होता है सामूहिक रूप से
यहां सामूहिकता की भावना इतनी प्रबल है कि होली हो या सामूहिक पूजा—हर आयोजन सब मिलकर करते हैं। ग्राम विकास की योजनाएं भी मिलकर तय होती हैं और उसी आधार पर काम होता है। यही कारण है कि इस गांव में चुनावी तनाव, वाद-विवाद या गुटबाजी जैसी समस्याएं कभी नहीं आईं।
बाकी गांवों के लिए आदर्श
जहां उत्तराखंड के कई गांव आज भी सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी समस्याओं को लेकर आंदोलित रहते हैं और पंचायत चुनावों के दौरान गुटबाजी चरम पर रहती है, वहीं कज्युली गांव शांत, संगठित और विकसित है। यह गांव बताता है कि अगर आपसी प्रेम और लोकतांत्रिक समझ हो, तो विकास भी आसान होता है और समाज भी सशक्त बनता है।
