हरिद्वार: धार्मिक आस्था का केंद्र और पवित्र नदी गंगा की शुद्धता पर सवाल उठ रहे हैं। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, हरिद्वार में गंगा का पानी बी श्रेणी में पाया गया है, जो पीने योग्य नहीं है।
धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक तथ्य
सदियों से गंगाजल को पवित्र माना जाता है और इसका उपयोग धार्मिक कार्यों में होता आया है। स्थानीय पुजारी उज्ज्वल पंडित का मानना है कि गंगाजल में औषधीय गुण होते हैं और यह कई बीमारियों का इलाज करने में सक्षम है।
प्रदूषण का खतरा
हालांकि, यूकेपीसीबी की रिपोर्ट ने इन धार्मिक मान्यताओं को चुनौती दी है। रिपोर्ट के अनुसार, गंगा के पानी में मानव मल मिलावट के कारण बैक्टीरिया की संख्या बढ़ रही है, जिससे पानी की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। यूकेपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह ने बताया कि चार मापदंडों के आधार पर गंगा का पानी बी श्रेणी में पाया गया है, जो नहाने के लिए उपयुक्त है लेकिन पीने के लिए नहीं।
यमुना नदी की तरह गंगा भी प्रदूषण की चपेट में
गंगा की स्थिति यमुना नदी जैसी होती जा रही है। हाल ही में दिल्ली में यमुना नदी की सतह पर जहरीले झाग की एक मोटी परत देखी गई थी, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ गई थीं।
क्या हैं गंगा प्रदूषण के कारण?
* घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट: नगर निगमों और उद्योगों द्वारा बिना उपचार के गंगा में छोड़ा जाने वाला कचरा।
* धार्मिक अनुष्ठान: धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान नदी में डाले जाने वाले पुष्प, दीपक और अन्य सामग्री।
* कृषि गतिविधियां: खेतों से बहकर आने वाले कीटनाशक और उर्वरक।
क्या हैं समाधान?
* सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स: सभी नगर निगमों में आधुनिक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स लगाना।
* औद्योगिक इकाइयों पर कड़ी नजर: उद्योगों को कचरे का निस्तारण करने के लिए सख्त नियमों का पालन करना सुनिश्चित करना।
* जागरूकता अभियान: लोगों को गंगा को स्वच्छ रखने के लिए जागरूक करना।
* धार्मिक नेताओं का सहयोग: धार्मिक नेताओं को गंगा की पवित्रता बनाए रखने के लिए प्रेरित करना।