काले ये बादल जो मंडराए तुम पर, उस बादल को तुम हटाकर तो देखो।
तुम्हारी खुशी तो तुम्हारे ही है यारा,
अपनी नज़र तुम उठाकर तो देखो।
ये जहाँ वाले तो सब बहुत बोलते हैं,
आत्मा की आवाज सुनकर तो देखो।
मिला जो तुझे वो किसी का नहीं है,
किस्मत पर अपनी नाज करके देखो।
न कोई धनी जितना तुम धनवान हो,
अपनों पर तुम विश्वास करके तो देखो
तेरी हर मुश्किलों में सब साथ देंगे तेरा
उनसे दिल की तुम बात करके तो देखो।
मुश्किलें भी अब न रोक पायेगी तुझको,
सबको अपने दिल में बसाकर तो देखो।
कहे कल्पना अब जहाँ चूमेगा कदमों को,
अपनी आत्मा को खुदा से मिलाकर तो देखो।
डॉ. कल्पना कुशवाहा ‘ सुभाषिनी ‘