देहरादून
ड्रेस कोड तोड़ने पर 1000 उठक-बैठक की सज़ा: डोईवाला कॉलेज में तीन छात्राएं बेहोश, अभिभावकों का हंगामा
डोईवाला के पब्लिक इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य ने ड्रेस कोड उल्लंघन पर छात्रों से लगवाई 1000 उठक-बैठक। सजा के दौरान तीन छात्राएं बेहोश, गुस्साए अभिभावकों ने कॉलेज में किया हंगामा। पूरी खबर और प्रिंसिपल का बयान जानें।
डोईवाला। डोईवाला के पब्लिक इंटर कॉलेज में अनुशासन के नाम पर अत्यधिक सज़ा देने का एक गंभीर मामला सामने आया है। शुक्रवार को कॉलेज के नवनियुक्त प्रधानाचार्य ने ड्रेस कोड का उल्लंघन करने पर 40 से अधिक छात्र-छात्राओं को एक-एक हज़ार बार उठक-बैठक लगाने का दंड दिया। इस निर्मम सज़ा के दौरान कक्षा दस की तीन छात्राएं बेहोश हो गईं, जिससे कॉलेज परिसर में अफरा-तफरी मच गई।
अभिभावकों का गुस्सा और गंभीर आरोप
घटना की सूचना मिलते ही बड़ी संख्या में अभिभावक कॉलेज पहुंच गए और उन्होंने प्रबंधन के खिलाफ जमकर हंगामा किया। अभिभावकों का आरोप था कि बेहोश हुई छात्राएं पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं, जिसके बावजूद उन्हें इतनी कठोर सज़ा दी गई। उन्होंने यह भी कहा कि छात्राओं के बेहोश होने के काफी देर बाद तक प्रिंसिपल ने उन्हें तत्काल प्राथमिक उपचार तक नहीं दिया। अभिभावकों ने चेतावनी दी कि स्कूल प्रबंधन द्वारा इस तरह का शारीरिक और मानसिक दंड देना किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। काफी देर तक हंगामे की स्थिति बनी रही, जिसे अंततः विद्यालय प्रबंधन समिति के हस्तक्षेप के बाद शांत कराया गया।
प्रधानाचार्य का बचाव: ‘अनुशासन के लिए ज़रूरी’
मामले को लेकर कॉलेज प्रबंधन का पक्ष भी सामने आया है। कॉलेज के प्रबंधक मनोज नौटियाल ने आरोपों पर सफाई देते हुए बताया कि छात्रों से 1 नवंबर से लगातार ड्रेस कोड का पालन करने की अपील की जा रही थी। इस संबंध में अभिभावकों को भी मैसेज के माध्यम से जानकारी भेजी गई थी। उन्होंने स्वीकार किया कि छात्रों को उठक-बैठक लगाने को ज़रूर कहा गया था, लेकिन उनका तर्क है कि स्कूल में अनुशासन बनाए रखने के लिए ऐसे कदम उठाना आवश्यक है। हालांकि, छात्रों को 1000 बार उठक-बैठक कराने की सज़ा की कठोरता पर उन्होंने सीधे कोई टिप्पणी नहीं की।
शिक्षा विभाग के नियम और कानूनी सवाल
यह घटना स्कूलों में शारीरिक दंड (Corporal Punishment) को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े करती है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत स्कूलों में बच्चों को किसी भी तरह का शारीरिक या मानसिक दंड देना सख्त मना है और यह अपराध की श्रेणी में आता है। अभिभावकों और शिक्षाविदों ने मांग की है कि इस मामले में नवनियुक्त प्रधानाचार्य के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ दोबारा न हों।
