उत्तराखण्ड

कतर से रिहाई के बाद आज पहुंचेंगे देहरादून भारतीय नौसेना के पूर्व कैप्टन सौरभ

जासूसी के आरोप में वहां सुनाई गई थी मौत की सजा, भारत सरकार की पहल पर हुई रिहाई
देहरादून। भारतीय नौसेना के पूर्व कैप्टन सौरभ वशिष्ठ को कतर में मौत की सजा सुनाई गई थी। सजा सौरभ को मिली, लेकिन उसे पल-पल भुगता दून में रह रहे उनके माता-पिता ने। सजा-ए-मौत के बाद सौरभ को रिहाई मिली तो सोमवार तड़के साढ़े तीन बजे उन्होंने अपने पिता को कॉल किया। अनजान नंबर जानकर सौरभ के पिता ने फोन काट दिया।
दोबारा घंटी बजी तो रिसीव करने पर दूसरी तरफ से आवाज आई, पापा सौरभ बोल रहा हूं। 18 महीने बाद बेटे की आवाज सुनकर उनकी नींद झटके से दूर हो गई। बेटे की आवाज सुनकर रुंधे गले से जो शब्द बाहर निकले, वह बता रहे थे कि जैसे मौत की सजा से रिहाई सौरभ के पिता को मिली हो। कतर जेल से रिहा होकर भारत पहुंचे पूर्व नौ सेना अफसरों में दून निवासी पूर्व कैप्टन सौरभ वशिष्ठ भी शामिल हैं।
बेटे ने दिल्ली पहुंचकर सबसे पहले पिता को रिहाई की सूचना दी। बेटे की आवाज सुनकर सौरभ के माता-पिता के आंसू छलक आए। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सौरभ के पिता आरके वशिष्ठ वायुसेना से रिटायर्ड विंग कमांडर हैं। सौरभ की पत्नी कतर में नौकरी करती हैं और उनकी दोनों बेटियां भी वहीं स्कूल में पढ़ रही हैं।
बता दें कि भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अफसर कतर में देहरा ग्लोबल टेक्नोलाजी एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज नामक कंपनी के लिए काम कर रहे थे। अगस्त 2022 में इन सभी को गिरफ्तार किया गया था। 26 अक्टूबर, 2023 को कतर की अदालत ने इन पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुना दी। भारत में रहने वाले उनके स्वजन उससे सदमे में आ गए। देशभर से रिहाई की मांग उठी। इसके बाद भारत सरकार ने इनकी रिहाई की प्रक्रिया शुरू की।
सौरभ के पिता आरके वशिष्ठ ने बताया कि उनके बेटे से दिल्ली में रहने वाले परिवार के लोग मिले हैं। उन्होंने सौरभ को फोन उपलब्ध करा दिया है। फोन पर सौरभ परिवार के लोगों के लगातार संपर्क में हैं। मंगलवार देर शाम तक उनके दून पहुंचने की उम्मीद है। उधर, कतर की एक कंपनी में नौकरी करने वाली सौरभ की पत्नी यहां आने के लिए रवाना हो गई हैं।
सौरभ के पिता ने बेटे की रिहाई का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिया। उन्होंने कहा कि यदि पीएम मोदी और भारत सरकार उनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप और निरंतर राजनयिक प्रयास नहीं करती तो उन्हें रिहा नहीं किया गया होता। नई दिल्ली से निरंतर राजनयिक हस्तक्षेप और कानूनी सहायता के बाद उनकी मौत की सजा को जेल की सजा में बदल दिया गया।

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