बहुत खुश थी वह उस दिन
जब उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी
फूल की थाली बजवायी थी उसने
बताशे बँटवाये थे
पर आज…
सिंहनी की कोख से
सियार के जन्म की कहावत को
चरितार्थ होते देख रही है
स्वयं अपनी आँखों से
ठोंक रही है माथा
दोनों हाथों से…।
देवेश द्विवेदी ‘देवेश