शनिवार को उदया तिथि में मौनी अमावस्या का स्नान दान शुभ
हरिद्वार। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के संत एवं शिवोपासना संस्थान, डरबन, साऊथ अफ्रीका के संस्थापक स्वामी राम भजन वन महाराज ने कहा कि सनातन धर्म में मौनी अमावस्या का खास महत्व है। मौनी अमावस्या पर मौन रहकर पवित्र नदी या जलकुंड में स्नान और दान करने का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसा कहते हैं कि मौनी अमावस्या पर दान-स्नान करने से इंसान के सारे पाप मिट जाते हैं और उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा कि माघ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। मौनी अमावस्या पर मौन रहकर पवित्र नदी या जलकुंड में स्नान और दान करने का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसा कहते हैं कि मौनी अमावस्या पर दान-स्नान करने से इंसान के सारे पाप मिट जाते हैं और उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज के संगम में स्नान करना भी बहुत लाभकारी बताया गया है। उन्होंने कहा कि
इस वर्ष मौनी अमावस्या की तिथि को लेकर लोगों में बहुत संशय है। कुछ लोग 21 जनवरी तो कुछ 22 जनवरी को मौनी अमावस्या बता रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, मौनी अमावस्या शनिवार, 21 जनवरी को सुबह 06 बजकर 16 मिनट से लेकर अगले दिन रविवार, 22 जनवरी को रात 02 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के कारण मौनी अमावस्या 21 जनवरी को ही मनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि ज्योतिषविदों की राय में 21 जनवरी को सुबह 8 बजकर 33 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 52 मिनट के बीच स्नान और दान-धर्म से जुड़े कार्य करने का शुभ मुहूर्त रहेगा. इस दौरान पवित्र नदी या कुंड में स्नान करने के बाद गरीब और जरूरतमंद लोगों को ठंड से बचने के लिए कम्बल, गुड़ और तिल का दान कर सकते हैं. पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लेते समय ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ और ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, मौनी अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इससे तर्पण करने वालों को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन नदी के घाट पर जाकर पितरों का तर्पण और दान करने से कुंडली के दोषों से मुक्ति पाई जाती है। इसके अलावा, इस दिन मौन व्रत रखन से वाक् सिद्धि की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत का विशेष महत्व होता है। मौन व्रत का अर्थ खुद के अंतर्मन में झांकना, ध्यान करना और भगवान की भक्ति में खो जाने से है।