माँ जन्म देती है संतान को करती है भरण-पोषण
आचरण में ढालती है उत्तम संस्कार चूमती है ललाट,देती है आशीष घिस देती है माथा टेक-टेक देवालयों की चौखट के पत्थर
करती है प्रार्थना उसके दीर्घायुष्य की
बाँधती है मंत्रपूत यंत्र
भुजा पर
कुशलता के लिये
उसकी इस निसर्ग-ममता का ऋण
नहीं चुका सकती संतान
वह नहीं हो सकती उॠण
जीवन भर माँ से…।
देवेश द्विवेदी ‘देवेश’