अल्मोड़ा/बागेश्वर/चंपावत/पिथौरागढ़

‘गाजर घास का उन्मूलन जरूरी’ पिथौरागढ़ में वैज्ञानिकों ने चलाया जागरूकता अभियान

पिथौरागढ़। गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पिथौरागढ़ के कृषि विज्ञान केंद्र गैना के वैज्ञानिकों ने  गाजर घास जागरूकता पखवाड़ा मनाया। इस जागरूकता कार्यक्रम में बिण व मूनाकोट ब्लॉक के अनेक किसानों  ने भाग लिया। जागरूकता कार्यक्रम केंद्र व केंद्र के बाहर (गांवो) में  चलाया गया।  गाजर घास जागरूकता पखवाड़ा कृषि विज्ञान केंद्र के फार्म गैना, कृषि विज्ञान केंद्र के फार्म ऐंचोली, ग्राम गैना, खड़कानी, किरिगांव, सुंदरनगर, मैथाना गांव  में किया गया।  जागरूकता कार्यक्रम  में 99 किसान व कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक व कर्मचारियों ने भाग लिया।  केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉक्टर जी एस बिष्ट, वैज्ञानिक डॉक्टर अभिषेक बहुगुणा, वैज्ञानिक डॉक्टर महेन्द्र  सिंह,  वैज्ञानिक डॉक्टर चेतन कुमार भट्ट , वैज्ञानिक डॉक्टर कंचन आर्या, श्री विनय कुमार  व अन्य उपस्थित रहे। विशेषज्ञों ने बताया कि गाजर घास  (Parthenium) एक पौधा है जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलता है। यह एकवर्षीय शाकीय पौधा है जो हर तरह के वातावरण में तेजी से उगकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन जाता है। इस विनाशकारी खरपतवार को समय रहते नियंत्रण में किया जाना चाहिए। आजकल इस घास मे सफेद रंग के फूल आ रखे है इस समय इसका नियंत्रण करना लाभप्रद है क्योंकि फूल से बीज नही बनेगा जिस कारण इसको फैलने से रोका जा सकता है।

यह भी पढ़ें 👉  पतंजलि बना मददगार, जोशीमठ के लिए भेजी राहत


इस खरपतवार की बीस प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती हैं। अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइंडीज, भारत, चीन, नेपाल, वियतनाम और आस्ट्रेलिया के विभिन्न भागों में फैली खरपतवार का भारत में प्रवेश तीन दशक र्पूव अमेरिका/ कनाडा से आयात किये गये गेहूं के साथ हुआ। अल्पकाल में ही लगभग पांच मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में इसका भीषण प्रकोप हो गया। यह खरपतवार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर-प्रदेश, मध्यप्रदेश, उडीसा, पश्चिमी बंगाल, आन्ध्रप्रदेश, र्कनाटक, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड के विभिन्न भागों में फैली हुई है।


एक से डेढ मीटर तक लम्बी गाजर घास के पौधे का तना रोयेदार अत्यधिक शाखा युक्त होता है। इसकी पत्तियां असामान्य रूप से गाजर की पत्ती की तरह होती हैं। इसके फलों का रंग सफेद होता है। प्रत्येक पौधा 1000 से 50000 अत्यंत सूक्ष्म बीज पैदा करता है, जो शीघ्र ही जमीन पर गिरने के बाद प्रकाश और अंधकार में नमी पाकर अंकुरित हो जाते हैं।
गाजर घास मनुष्य और पशुओं के लिए भी एक गंभीर समस्या है। इससे खाद्यान्न फसल की पैदावार में लगभग 40 प्रतिशत तक की कमी आंकी गई है। इस पौधे में पाये जाने वाले एक विषाक्त पर्दाथ के कारण फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दलहनी फसलों में यह खतरपतवार जड ग्रंथियों के विकास को प्रभावित करता है तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को भी कम कर देता है। इसके परागकण बैंगन, र्मिच, टमाटर आदि सब्जियों के पौधे पर एकत्रित होकर उनके परागण अंकुरण एवं फल विन्यास को प्रभावित करते हैं तथा पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी एवं पुष्प र्शीषों में असामान्यता पैदा कर देते हैं।
इस खरपतवार के लगातार संर्पक में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एर्लजी, बुखार, दमा आदि की बीमारियां हो जाती हैं। पशुओं के लिए भी यह खतरनाक है। इससे उनमें कई प्रकार के रोग हो जाते हैं एवं दुधारू पशुओं के दूध में कडवाहट आने लगती है। पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में इसे चर लेने से उनकी मृत्यु भी हो सकती है।
इससे पूर्व किसान भूषण सम्मान से सम्मानित पूर्व सूबेदार केशवदत्त मखौलिया के किसान पाठशाला में मुख्य अतिथि मनरेगा लोकपाल जगदीश कलौनी ने मनरेगा योजनान्तर्गत संचालित विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी।

यह भी पढ़ें 👉  हरिद्वार में बिना लाइसेंस दवाइयां बनाने वाली कंपनी सील, 3 गिरफ्तार
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

CWN उत्तराखंड समेत देश और दुनिया भर के नवीनतम समाचारों का डिजिटल माध्यम है। अपने विचार या समाचार प्रसारित करने के लिए हमसे संपर्क करें। धन्यवाद

[email protected]

संपर्क करें –

ईमेल: [email protected]

Select Language

© 2023, CWN (City Web News)
Get latest Uttarakhand News updates
Website Developed & Maintained by Naresh Singh Rana
(⌐■_■) Call/WhatsApp 7456891860

To Top
English हिन्दी