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उत्तरायनी (घुघुतिया त्यौहार) की ऐसे शुरू हुई परम्परा…

अल्मोड़ा। कुमाऊं में मनाए जाने वाले घुघुतिया त्यौहार की अलग ही पहिचान है। त्यौहार का मुख्य आकर्षण कौवा है। बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलते हैं। कहते हैं “काले कावा काले घुघुति मावा खाले”।


बात उनदिनों की है जब कुमाऊ में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उसका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उसका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नी बाघनाथ के मन्दिर में गए और अपनी औलाद के लिए प्रार्थना की। बघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भय चंद पड़ा। निर्भय को उसकी माँ प्यार से घुघुति के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिस में घुगरु लगे हुए थे। इस माला को पहन कर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद्द करता तो उसकी माँ उस से कहती कि जिद्द ना कर नहीं तो में माला कौवे को दे दूंगी। उसको डराने के लिए कहती कि “काले कौवा काले घुघुति माला खाले”। यह सुन कर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर घुघुति जिद्द छोड़ देता। जब माँ के बुलाने पर कौवे आजाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती। धीरे धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई।


उधर मंत्री जो राज पाट की उमीद लगाए बैठा था घुघुति को मारने की सोचने लगा। ताकि उसी को राजगद्दी मिले। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था वह उसे चुप-चाप उठा कर ले गया। जब वह घुघुति को जंगल की ओर ले के जा रहा था तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर जोर से काँव काँव करने लगा। उस की आवाज सुनकर घुघुति जोर जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा। इतने में सभी कौवे इकठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले गया। सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपने चौंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबरा कर वहां से भाग खड़े हुए।।घुघुति जंगल में अकेला रह गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए।
जो कौवा हार लेकर गया था वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर जोर से बोलने लगा। जब लोगों की नज़रे उस पर पड़ी तो उसने घुघुति की माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी। माला सभी ने पहचान ली। इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरे डाल में उड़ने लगा। सब ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जनता है। राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए। कौवा आगे आगे घुड़सवार पीछे पीछे।
कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया। राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया।।घर लौटने पर जैसे घुघुति की माँ के प्राण लौट आए। माँ ने घुघुति की माला दिखा कर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जिन्दा नहीं रहता। राजाने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया। घुघुति के मिल जाने पर माँ ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे, घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे धीरे सारे कुमाऊ में फैल गई और इसने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मानते हैं। मीठे आटे से यह पकवान बनाया जाता है जिसे घुघूत नाम दिया गया है। इसकी माला बना कर बच्चे मकर संक्रांति के दिन अपने गले में डाल कर कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं:-
“काले कौवा काले घुघुति माला खाले” ।
“लै कावा भात में कै दे सुनक थात”
“लै कावा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़”
“लै कावा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़”
“लै कावा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे”
इसके लिए हमारे यहाँ एक कहावत भी मशहूर है कि श्रादों में ब्रह्मण और उत्तरायनी को कौवे मुश्किल से मिलते हैं।

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साभार… “कुमाऊनी शब्द संपदा

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