धार्मिक ग्रंथ अन्याय की प्रेरणा नहीं देते: प्रो.दलजीत
बहादराबाद। उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार स्थित श्री गुरु गोबिन्द सिंह शोधपीठ द्वारा ‘श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन एवं विरासत’ विषय पर राष्ट्रीय व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेशचंद्र शास्त्री ने कहा कि श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन एक जीवन्त कार्यशाला है, खालसा पंथ हिन्दू समाज का निखरा हुआ रूप है, जिसे वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता से पृथक नहीं किया जा सकता।
प्रोफेसर शास्त्री ने कहा कि श्री गुरु गोबिन्द सिंह ने जीवन पर्यन्त मौलिक अधिकारों, स्वतंत्रता, आत्म सम्मान की भावना एवं सांस्कृतिक विविधता का संरक्षण किया है, उस का ऋण उतार पाना सम्भव नहीं है।
कार्यक्रम के विषय-विशेषज्ञ एवं पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के प्रो0 दलजीत सिंह ने कहा कि कोई भी धर्म अथवा धार्मिक ग्रंथ मनुष्य को अन्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा नहीं देता है। यह मनुष्य का दोष है कि वह कट्टरता को अपनाकर अपनी व्यक्तिगत अवधारणा के प्रभाव में धर्म के मूल मार्ग से भटक जाता है। प्रो0 दलजीत ने कहा कि आज इतिहास आधारित तथ्यों पर पुनः दृष्टिपात करने की नितान्त आवश्यकता है, जिससे श्री गुरु गोबिन्द सिंह के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को वास्तविक एवं मौलिक रूप में समाज के सामने प्रस्तुत किया जा सके।
शोध पीठ के समन्वयक डॉ. अजय परमार ने श्री गुरु गोविंद सिंह शोधपीठ की स्थापना एवं सार्थकता के विषय में प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि शोध पीठ के द्वारा समय-समय पर कार्यशाला, प्रकाशन, व्याख्यानमाला एवं सम्मेलनों का आयोजन किया जाएगा, जिससे देश अपने गौरवशाली इतिहास पर गर्व कर सके।
शोधपीठ के संयोजक डॉ0 विनय सेठी ने कार्यक्रम का संयोजन किया। विशेष विशेषज्ञ का परिचय स्वामी दयानंद सरस्वती शोध पीठ के समन्वयक डॉ0 उमेश शुक्ल द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उड़ीसा, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश,पश्चिम बंगाल,राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित विभिन्न राज्यों के विद्यार्थी, प्राध्यापक, शोधकर्ता एवं इतिहास-प्रेमी उपस्थित रहे। धन्यवाद ज्ञापन पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ की समन्वयक डॉ0 श्वेता अवस्थी द्वारा किया गया।