अल्मोड़ा/बागेश्वर/चंपावत/पिथौरागढ़
उत्तराखंड के आंदोलनकारियों का छलका दर्द: नगरखान में सादगी से मनाई रजत जयंती, कहा- ‘ये सपनों का राज्य नहीं’
अल्मोड़ा के नगरखान में राज्य आंदोलनकारियों ने सादगी से मनाया रजत जयंती वर्ष। वक्ताओं ने कहा कि राज्य निर्माण की मूल भावना खत्म, पलायन चरम पर और विकास दूर-दूर तक नहीं, नीतियों में बदलाव जरूरी।
अल्मोड़ा: जहां एक ओर उत्तराखंड सरकार राज्य स्थापना की रजत जयंती वर्ष को बड़े धूमधाम से मना रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य आंदोलनकारियों ने जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर नगरखान में यह दिवस सादगीपूर्ण तरीके से मनाया। इस विशेष कार्यक्रम में वक्ताओं ने गहरा असंतोष व्यक्त किया। आंदोलनकारियों ने एक स्वर में कहा कि जिस उद्देश्य और बलिदान के साथ उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था, वह सपनों का राज्य कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आता।
‘आधा-अधूरा विधेयक और पुरानी नीतियां’
वक्ताओं ने राज्य की वर्तमान दुर्दशा के लिए तत्कालीन सरकारों की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि राज्य की नींव तभी कमजोर पड़ गई थी, जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य निर्माण विधेयक में 29 संशोधन कर दिए, और केंद्र सरकार ने उसी आधा-अधूरे विधेयक को पारित कर राज्य बना दिया। रही-सही कसर राज्य में सत्ता में आई भाजपा और कांग्रेस सरकारों ने पूरी कर दी, जिन्होंने राज्य हित में पहाड़ की स्थितियों के अनुरूप नीतियां बनाने के बजाय पुरानी नीतियों को जारी रखा। जिसका परिणाम यह हुआ कि पलायन रुकने के स्थान पर बढ़ गया है, और विकास के नाम पर सड़कों के निर्माण के अलावा कहीं कुछ दिखाई नहीं देता।
मासिक पेंशन और मूलभूत समस्याओं पर चर्चा
आंदोलनकारियों ने स्पष्ट किया कि यदि राज्य व केंद्र सरकार इस रजत जयंती वर्ष में उत्तराखंड की दिशा और दशा बदलने हेतु नीतियों में बदलाव करने का संकल्प लेती है, तभी विकास संभव है, अन्यथा हालात दिन-प्रतिदिन और खराब होते जाएंगे। इस अवसर पर वक्ताओं ने क्षेत्र की पानी, सड़क, विद्यालयों और चिकित्सालयों की मूलभूत समस्याओं पर भी विस्तार से चर्चा की। समस्याओं के समाधान हेतु पृथक से ज्ञापन शासन-प्रशासन को भेजने और आन्दोलनात्मक कदम उठाने का भी निर्णय लिया गया है।
₹20 हजार मासिक पेंशन की मांग
कार्यक्रम में उपस्थित आंदोलनकारियों ने अपनी लंबित मांगों को एक बार फिर उठाया। उन्होंने राज्य आंदोलनकारियों को 20 हजार रुपये मासिक पेंशन दिए जाने के साथ-साथ उनके आश्रितों को भी शीघ्र पेंशन दिए जाने की मांग की। इस अवसर पर ब्रह्मानन्द डालाकोटी, दौलत सिंह बगड्वाल, गोपाल सिंह बनौला, पूरन सिंह और अन्य कई प्रमुख आंदोलनकारी उपस्थित रहे। उनका यह सादगीपूर्ण समारोह वर्तमान सरकार के भव्य समारोहों के बीच असंतुष्ट भावनाओं को स्पष्ट रूप से उजागर करता है।
