प्रख्यात पर्यावरणविद डा. रवि चोपड़ा ने एक शोध पत्र के हवाले से किया दावा
अल्मोड़ा। जोशीमठ की चट्टानें दुनिया की सबसे कमजोर और संवेदनशील हैं। जोशीमठ में आज जो कुछ भी घटित हो रहा है उसका सीधा संबंध एनटीपीसी की कार्यप्रणाली से है। ये बात प्रख्यात पर्यावरणविद डा. रवि चोपड़ा ने एक शोध पत्र के हवाले से कही है।
उन्होंने एनटीपीसी और एल एंड टी के आंकड़ो के आधार पर लिखे एक शोध पत्र मे कहा कि 2009 में तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना मे टीबीएम के फंसने के साथ ही पानी का रिसाव भी हुआ। उस पानी के दबाब के चलते जोशीमठ मे नई दरारें बनीं और पुरानी दरारें और अधिक चौङी हो गई। यही कारण है कि टनल से पानी का रिसाव हुआ।
शोधपत्र में कहा है कि उस वक्त कंपनियों को उपचार के उपाय सुझाए गए थे लेकिन सुझावों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई । अपने शोध में उन्होंने पाया कि टनलिंग(सुरंग बनाने की प्रक्रिया) की वजह से भू जल के तंत्र पर प्रभाव पड़ा । टनल से पानी का जितना रिसाव हुआ उससे कई गुना अधिक पानी फरवरी 2021 को सुरंग में घुसा । पानी घुसने से चट्टानों में नइ दरारें बनी और पुरानी दरारें चौडी हो गई । उन्होंने जोशीमठ आपदा को कंपनियों की सुरंग प्रक्रिया का परिणाम बताया है, जिसे आज उत्तराखण्ड झेल रहा है ।
नियन्त्रित विस्फोटों के दावों को भी उन्होंने खोखला वताया है । विस्फोट के समय वहां वैज्ञानिक नहीं, ठेकेदार रहता है जो अपना काम खत्म करने की जल्दी में रहता है । उन्होंने अपने शोध में और भी कई खुलासे किये हैं ।
जोशीमठ की चट्टानें सबसे कमजोर और संवेदनशील: चोपड़ा
By
Posted on