हल्द्वानी
अलविदा ‘राजा भाई’: उत्तराखंड के जन आंदोलनों की आवाज़ हमेशा के लिए शांत, PC तिवारी भावुक!
उत्तराखंड के वरिष्ठ भाकपा (माले) नेता और जन आंदोलनों की मज़बूत आवाज़ कॉमरेड राजा बहुगुणा का निधन। उपपा अध्यक्ष पीसी तिवारी ने दी श्रद्धांजलि, कहा- उनका वर्गसंघर्ष हमेशा ज़िंदा रहेगा।
हल्द्वानी। उत्तराखंड के तमाम बड़े जन आंदोलनों की अगुवाई करने वाले और भाकपा (माले) के वरिष्ठ नेता कॉमरेड राजा बहुगुणा के निधन से प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई है। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी (उपपा) ने उनके जाने पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है। उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी. तिवारी ने कहा कि कैंसर जैसी बीमारी ने उनसे एक ऐसा ‘संघर्षशील, सादगीभरा और नि:स्वार्थ’ साथी छीन लिया है, जिसकी भरपाई असंभव है।
संघर्ष की शुरुआत और अटूट प्रतिबद्धता
राजा बहुगुणा का सार्वजनिक जीवन छात्र राजनीति से शुरू हुआ। उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर में पढ़ते हुए 1977–78 में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी से नाता जोड़ा। 16 फरवरी 1978 को हल्द्वानी में छात्रों पर हुए लाठीचार्ज के खिलाफ चले व्यापक जनआंदोलन में उनकी नेतृत्वकारी भूमिका स्पष्ट दिखाई दी। इसी दौरान वे सीपीआई (एमएल) से जुड़े और जीवनपर्यंत पार्टी को मजबूत करने के लिए पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ काम करते रहे। उनकी प्रतिबद्धता और सादगी बेमिसाल थी।
हर आंदोलन में अग्रणी रहे ‘राजा’
उत्तराखंड में हुए लगभग हर बड़े जनआंदोलन में राजा बहुगुणा सबसे आगे खड़े दिखाई दिए। चाहे वह मज़दूरों, किसानों और भूमिहीनों के हक की लड़ाई हो, या फिर “नशा नहीं, रोजगार दो” का सामाजिक नारा, या फिर उत्तराखंड राज्य आंदोलन—वे हमेशा सबसे सक्रिय और विश्वसनीय साथी रहे। पीसी तिवारी ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि राजा भाई ने सत्ता और संसाधनों की लालसा से दूर रहकर अपना पूरा जीवन उन वंचित लोगों की आवाज़ बनने में लगा दिया, जिनकी पुकार अक्सर अनसुनी रह जाती है।
मूल्यों के प्रति समर्पित जीवन
आज के दौर में जब सिद्धांतों से समझौता करने वाले चेहरों की भरमार है, ऐसे समय में राजा भाई जैसे समर्पित और प्रतिबद्ध साथी का चले जाना दिल को गहराई तक दुखी करता है। उनका जीवन एक उदाहरण है कि राजनीति लाभ के लिए नहीं, बल्कि लोगों की सेवा और न्यायपूर्ण समाज के सपने को साकार करने के लिए की जाती है। पीसी तिवारी ने भावुक होकर कहा, “आप देह से भले ही दूर हो गए हों, लेकिन आपका साहस, आपकी सादगी, आपका वर्गसंघर्ष और न्यायपूर्ण समाज का सपना हमारे हर आंदोलन और हर जनसभा में ज़िंदा रहेगा।” उनकी यादें और संघर्ष की विरासत हमेशा उत्तराखंड के आंदोलनों को ऊर्जा देती रहेगी।
