शैक्षिक संवाद मंच की कार्यशाला में कविता के कथ्य और तथ्य पर हुआ मंथन
पिथौरागढ़। “केवल तुकांतता ही कविता नहीं हो सकती है। किसी भी कविता में कथ्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, रूप का प्रयोग तो कथ्य को बेहतरीन ढंग से कहने के लिए किया जाता है। कविता वही बड़ी है जिसमें विचार, भाषा या इंद्रिय बोध की नवीनता हो। यह नवीनता आती है जीवन के अनुभव और अवलोकन की क्षमता से। मितभाषिता कविता को गद्य से अलग करती है। गद्य जहां सब कुछ साफ-साफ कह देता है वही कविता कहती कम छुपाती ज्यादा है और पाठक के लिए नए अर्थों के संधान की गुंजाइश छोड़ जाती है।” उक्त बातें वरिष्ठ कवि और शैक्षिक दखल पत्रिका के संपादक महेश चंद्र पुनेठा द्वारा शैक्षिक संवाद मंच के “कविता पर एक संवाद” कार्यशाला में शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा गया। शैक्षिक संवाद मंच द्वारा प्रमोद दीक्षित मलय के संपादन में प्रकाशित होने वाले काव्य संग्रह “बेसिक शिक्षक रचनावली” में लेखन हेतु देश भर के शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान के लिए आयोजित इस ऑनलाइन कार्यशाला श्री पुनेठा ने कविता के विभिन्न पक्षों पर अज्ञेय की सॉप, हरिश्चंद पाण्डेय की मां और देवता, बैठक का कमरा, मोहन नागर की अब कूद जाओ, शमशेर बहादुर की ऊषा, शेखर जोशी की धान की रोपाई आदि कविताओं के माध्यम से कविता के विभिन्न पक्षों को सहजता के साथ स्पष्ट करते हुए कहा कि कविता को मनुष्यता के पक्ष में समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज बनकर सत्य और न्याय की बात करनी चाहिए।
शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक और वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने बताया कि मंच की पुस्तक प्रकाशन योजना विद्यालयों को आनंदघर बनाने की मुहिम का ही एक हिस्सा है। हम चाहते हैं कि हमारे शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में नित हो रहे परिवर्तनों से अद्यतन रहें। मंच द्वारा 2012 में स्थापना के बाद से कविता, संमरण, जीवनी, यात्रा वृत्तांत आदि विभिन्न विधाओं पर दर्जन भर पुस्तके प्रकाशित किया गया है। इस वर्ष शिक्षकों की शैक्षिक यात्रा, मेरा कमरा मेरा जीवन और बेसिक शिक्षक रचनावली का विभिन्न खण्डों में प्रकाशन प्रस्तावित है। मंच प्रत्येक संग्रह के प्रकाशन के पूर्व विधागत प्रशिक्षण हेतु कार्यशाला आयोजित करता है। आज की कार्यशाला इसी श्रृंखला की अगली कड़ी है।
कार्यक्रम के अंत में आमंत्रित अतिथि, आयोजक, प्रतिभागियों संचालक और मंच के प्रति आभार व्यक्त करते हुए शिक्षक दुर्गेश्वर राय ने कहा कि यह कार्यशाला एक तरफ कवियों की कविता के प्रति समझ को संवर्धित करेगी तो वहीं दूसरी तरफ नए शिक्षकों को बेहतर कविता लिखने के लिए प्रेरित करेगी। कार्यक्रम का प्रभावी और अनुशासित संचालन प्रीति भारती ने किया। कार्यक्रम में आभा त्रिपाठी, अलका शुक्ला, अमित कुमार, अमिता सचान, अनीता मिश्रा, अनीता यादव, अनुष्का शुक्ला, आरती तिवारी, डॉ० अरविंद कुमार द्विवेदी, अर्चना वर्मा, अनुष्का जड़िया, बाल विनोद उईके, दाऊ दयाल वर्मा, धर्मेंद्र त्रिवेदी, डॉ० चैताली यादव, फरहत माबूद, गुंजन भदौरिया, हरियाली श्रीवास्तव, जितेंद्र, शंकर रावत, कमलेश कुमार पांडेय, कमलेश त्रिपाठी, राघव, मंजू वर्मा, मनमोहन सिंह, मीरा रविकुल, पंकज निगम, पवन तिवारी, मीरा, पूनम दीक्षित, प्रदीप गौतम, प्रीति भारती, प्रियंका त्रिपाठी, मनीष रिया, राजेंद्र राव, रामजी शर्मा, रितिका मिश्रा, रेनू त्रिपाठी, रीता पांडेय, सरस्वती देवी, शालिनी सिंह, श्रवण कुमार गुप्ता, सृष्टि चतुर्वेदी, सुधा रानी, सुमन कुशवाहा, सुरेश चंद्र, सुनीता वर्मा, रुखसाना बानो, रश्मि, वैशाली मिश्रा, वंदना श्रीवास्तव, विभाष श्रीवास्तव, बिंदेश्वरी प्रसाद, विवेक पाठक, विवेक कुमार, विनीत कुमार मिश्रा, वत्सला पाठक, दुर्गेश्वर राय सहित 80 से अधिक शिक्षक शिक्षिकाओं ने प्रतिभाग किया।
कहने से ज्यादा छुपाती है कविता : महेश चंद्र पुनेठा
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